यह गीत, श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " बोल मेरे मौन " ( गीत-संग्रह ) से लिया गया है -
वक्त की बात
बंधु, यह तो वक्त की है बात !!
सत्य को समझा गया जब झूठ ,
स्वत्व को माना गया जब लूट ,
उफ़, मनाने पर नहीं माना
सिरफ़िरा अपना गया जब रूठ ;
चाँदनी के घर कुहासा है ,
सिंधु जब नभ में रुआँसा है ,
बर्फ़ की तह है जमी मन पर ,
तप्त आतप का कि जब उत्पात !
बंधु यह तो वक्त की है बात !! **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा
फोन नम्बर - 9414771867
धन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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