यह गीत, श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " बोल मेरे मौन " ( गीत-संग्रह ) से लिया गया है -
स्वर्ग की खातिर
इस ऊँचे आसमाँ की बुलंदी को क्या करूँ ?
मैं हूँ पखेरू, गर न उडूँ भी तो क्या करूँ ?
सूरज की आग मुझको राख तो न कर सकी,
पर मेरे इन परों को नई आब दे गई,
मेरा वजूद भी है कुछ इस दौरे वक्त में,
धरती को ये तहरीर मेरी छाँव दे गई,
ताउम्र मैं हवा के इर्द-गिर्द ही रहा,
झिंझोड़ा बगूलों ने, कहर मौत का सहा,
ये ज़िन्दगी * अजीयतों * का नर्क ही सही,
पर स्वर्ग की ख़ातिर न लडूँ भी तो क्या करूँ ?
इस ऊँचे आसमाँ की बुलंदी को क्या करूँ ?
मैं हूँ पखेरू, गर न उडूँ भी तो क्या करूँ ? **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन : सुनील कुमार शर्मा
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