देश का भविष्य चौराहे पर भीख मांग रहे हैं
मैं भी गया था शहर
चौराहे पर चक्कर काट रहा था।
नजर पड़ी मासूम से बच्चों पर।
आज भी बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे है।
कहाँ गया इनका भोलाभालापन ।
क्या नहीं है माता - पिता का जीवन ।
अपने जीवन को चलाने में बच्चे ।
आज भी बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
कुछ माता - पिता की करनी रही होगी ।
कुछ नेताओं ने शिक्षा में कमी रखी होगी ।
इन सब की करनी को पूरा करने के लिए ।
आज भी बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
क्या कमी छोड़ दी सरकार ने ।
क्या परवरिश नहीं की माता - पिता ने ।
पढ़ना लिखना छोड़कर इस उम्र में ।
आज भी बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
खेल समाप्त हो गए हैं इनके लिए।
शिक्षा ही नहीं बनाई है इनके लिए ।
पढ़ना खेलना छोड़कर इस उम्र में।
आज भी बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
कहानी सुनाने वाले दादा - दादी नहीं ।
क्या ये मोहब्बत के काबिल नहीं ।
प्यार मोहब्बत से अनजान ये ।
बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहा है।
व्यभिचार ही व्यभिचार फैल रहा है।
कैसे शिक्षित होगा हमारा समाज ।
क्योंकि बच्चे चौराहे पर भीख मांग रहे हैं।
नेता कहते विकास नहीं हो रहा हैं।
देश दिन पर दिन पिछड़ रहा है ।
ए नरेंद्र कैसे बढ़ेगा देश बुलंदियों पर ।
क्योंकि देश का भविष्य तो भीख मांग रहा है।
बच्चे तो बच्चे होते हैं पर दिल के सच्चे होते हैं।
बच्चों का बचपन यूँ बर्बाद मत कीजिए ।
है आधुनिक युग के शिक्षित दानव ।
एक बार इनको शिक्षित करके तो देखिए । **
- नरेंद्र कुमार आचार्य
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
फोन नम्बर – 9414771867.
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद श्रीमान
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