बहकती शाम
बहकती शामों में यू मदहोश हूँ मैं.
ज़रा होश में आने का कोई बहाना तो दे.
सदगो पे धड़कता हर दिल ज़िसकी .
उसकी पनाह में कोई एक शाम तो दे.
आर्जुओं को समेटे हूए हैं अपनी
बहका कर ही सही कोई वफ़ा का नाम तो दे
कोई गाथा य़ा कोई अफसाना ना लिखना .
बस पल दो पल का कोई साथ तो दे..
सारे गिले सिकवे भुला कर हम आयेगें ..
धोका ही सही कोई छलकता जांम तो दे
शिफारिसे अटकी हुई हैं हमारी उनके दरबार में
रिश्वत से ही सही कोई उन तक पैगाम तो दे
बहाना हम भी कर लेगे दिल्लगी का..
अरमानो को कोई जुल्फों की छाव तो दे
मुनासिब है आपका यू शर्माना भी..
पर कोई हमारी ईबादत का नाम तो दे..
कर चुके हैं गुमशुदा खुद को इस कसमकस में
तकल्लूफ ए - बेताबी का करार तो दे..
भटके हुए हैं राह में तुमारी..
कोई मिलने का फरमान तो दे. **
- योगेन्द्र सिंह
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
सुन्दर रचना
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