एक चिड़िया
एक चिडिया थी मानमानी सी..
छोटी सी मगर _ थी प्यारी सी..
अब कही नजर नहीं आती न मंडराती ..
कभी सवेरा मेरा उसी की चहचाहट से हुआ करता था.
घर के आंगन के पेड पर डेरा उसका था..
उसकी एक आवाज से लगता माँनो सावन आया हो.
बादलो का आना उसकी चहचाने का संकेत था.
अगर रेत मे नहाती तो बरसात का होना तय था
सफेद रंग काले धब्बे उसकी बात निराली ..
मगर अब वो कही नजर नहीं आती न मंडराती..
पता नहीं इतना आगे क्यो आगये हम..
ज़हा अपना ही बचपन ओर य़ादे साथ ना रह पाये.
आखिर क्या बिगाडा था उसने हमारा..
बस चहचाकर हमारा ध्यान ही तो खीचती ..
पर अब वो कही नजर नहीं आती ना मंडराती ..
उसका नहीं कसूर तो हमारा है.
पता नही एसे कितने ही जीवो को खो दिया.
अपनी एक _आध तरक्की के लिए
हमे अब भी लज्जा जाने क्यो ना आती..
वो चिडिया अब कही नजर नहीं आती ना मंडराती..
- योगेन्द्र सिह
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर
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