यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
खरीफ़ का गीत
सिर से ऊँचा खड़ा बाजरा , बाँध मुरैठा मका खड़ी ,
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी |
पाँच सरपतों पर धर करके
हवा चल रही है सर - सर ,
केतु फहरते हैं काँसों के
बाँस रहे हैं साँसें भर ;
पाँव गड़ाती दूब जा रही , किस प्रीतम के गाँव बढ़ी ,
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी |
सींग उगा करके सिंघाड़ा
बिरा रह मुँह बैलों का
झाड़ और झंखाड़ खड़े हैं
राह रोक कर गैलों का ;
पोखर की काँपती सतह पर , बूँदों की सौ थाप पड़ीं |
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी |
घुइयाँ बैठी छिपी भूमि में
पातों की ये ढाल लिये ,
लेकिन अपनी आँखों में है
अरहर ढेर सवाल लिये;
फिर भी सत्यानाशी के मन मैं हैं अनगिन फाँस गड़ीं |
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी |
पके हुए धानों की फैली
ये जरतारी साड़ी है |
खँडहर की दीवारों पर ये
काईदार किनारी है ;
छोटे - बड़े कुकुरमुत्तों ने पहनी है सिर पर पगड़ी |
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी |
ले करके आधार पेड़ का
खड़ी हुई लँगड़ी बेलें ,
निरबंसी बंजर के घर में
बेटे - ही - बेटे खेलें ;
बरखा क्या आयी , धरती पर वरदानों की लगी झड़ी |
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुंदर रचना है
ReplyDeleteधन्यवाद सफ़र जी |
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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