यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - "एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
उठ रही हैं लपटें
उठ रहीं लपटें !
निहत्थे हम
चक्रव्यूहों में घिरे हैं ,
उचित क्षण में
हो गये हम बेसुरे हैं
किस तरह
खुल कर खिलें ?
जब तान कर
हम पर दुनाली
क्रूर आखेटक - सरीखे
लोग लपटें !
उठ रहीं लपटें !
देखते हम
जा रहे आँखें बचा सब ,
हैं सुरक्षित
सुलह - समझौते रचा सब ,
भीड़ है
पर फ़िक्र किसको ?
ओफ़ , बर्बर रक्तसागर में
मरें या कटें हम ,
डूबें कि रपटें !
उठ रही लपटें ! **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
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