Followers

14.10.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " उठ रही हैं लपटें "

 यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - "एक अक्षर और " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -











उठ रही हैं लपटें 


उठ रहीं लपटें !

निहत्थे हम 

चक्रव्यूहों में घिरे हैं ,

उचित क्षण में 

हो गये हम बेसुरे हैं 

          किस तरह 

          खुल कर खिलें ?

जब तान कर 

हम पर दुनाली 

क्रूर आखेटक - सरीखे 

लोग लपटें !


उठ रहीं लपटें !

देखते हम 

जा रहे आँखें बचा सब ,

हैं सुरक्षित 

सुलह - समझौते रचा सब ,

          भीड़ है 

          पर फ़िक्र किसको ?

ओफ़ , बर्बर रक्तसागर में 

मरें या कटें हम ,

डूबें कि रपटें !

उठ रही लपटें !  **


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 


-------------------------------------


 संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

  

No comments:

Post a Comment

आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |