वर्षान्त के बिन बरसे बादलों को देखकर
घिरे मेघ कल से , अभी तक न बरसे |
ये ऐसे निढाल औ' थके पड़े हैं ,
ज्यों आये हों चल करके लम्बे सफ़र से |
ये निश्चिन्त थे , इसलिए सुर्खरू थे ,
पड़े साँवले किन्तु अब किस फ़िकर से |
नहीं बूंद तक गाँठ में स्यात् इनके ,
दिखावा किये हैं मगर किस कदर से |
गिरा थाल पूजा का कुंकुम , हरिन्द्रा ,
अगरु , धूप , अक्षत - गये सब बिखर - से |
ये सूखे हुए रेत पर साँप लहरे ,
लकीरें बनी , पर हैं ओझल नज़र से |
नहीं तृप्ति को दी है आशीष इनने ,
प्रतीक्षित नयन देखकर ये न हरषे |
घिरे मेघ कल से , अभी तक न बरसे | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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