यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
कौन जाने ?
( शरद् पूर्णिमा की रात को ताज की पृष्ठभूमि में लिखित )
गीत तो गाये बहुत जाने - अनजाने ,
स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ?
उड़ गये कुछ बोल जो मेरे हवा में ,
स्यात् उनकी कुछ भनक तुमको लगी हो |
स्वप्न के निशि - होलिका में रंग - घोले ,
स्यात् कोरी नींद की चूनर रंगी हो |
भेज दी मैंने तुम्हें लिख ज्योति - पाती ,
साँझ - बाती के समय दीपक जलाने के बहाने !
गीत तो गये बहुत ...
ये शरद् का चाँद सपना देखता है ,
आज किस बिछुड़ी हुई मुमताज का यों ?
गुम्बदों में गूँजती प्रतिध्वनि उड़ाती ,
आज ये उपहास हर आवाज़ का क्यों ?
संगमरमर पर चरन ये चाँदनी के ,
बुन रहे किस रूप के रंगीन ताने और बाने ?
गीत तो गये बहुत ...
छू गुलाबी रात का शीतल - सुखद तन ,
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी |
ओस - कन में दूब की गीली बरौनी ,
छोड़ कर ये रिमझिमें किस ओर चल दीं ?
कौन - सी धरती सुलगती देख कर के ,
आज बादल बन गये हैं इस धरा को ही वीराने ?
गीत तो गाये बहुत ...
प्रात की किरनें कमल के लोचनों में ,
और धुँधला शशि हुआ जाता दिए में |
रात का जादू मिटा जाता इसी से ,
एक अनजानी कसक जगती हिये में |
ग्रह - उपग्रह टूटते टकरा सपन के ,
जबकि आकर्षण पड़े हैं सौरमण्डल के पुराने !
गीत तो गाये बहुत जाने - अनजाने ,
स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ? **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गीत ।
ReplyDeleteधन्यवाद , आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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