यह लघुकथा पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से लिया गया है -
बेकारी में
उसके साथ अक्सर ऐसा ही होता है , लगभग रोज - रोज !
हो भी क्यों नहीं | कुछ करता भी तो नहीं है | भाई के पैसों से कब तक घर चलता रहेगा ? पापा हैं जो ' घोटाले ' में पकड़े गए | पापा कहते हैं - " इंजीनियरों ने खाया ' और पूरा उनके मत्थे मढ़ दिया ! ' जो भी हो | अब तो सस्पेंड होकर घर में बैठे हैं |
वह रसोई में जाता है मम्मी रोटियाँ बना रही हैं | वह कहता है , ' देखो मम्मी , पापा को समझा दो | रोज - रोज की चख - चख मुझे पसंद नहीं है ... मुझे भी तो चिंता है | '
पापा ने शायद सुन लिया | वह रसोई के दरवाजे पर हाथ टिकाकर बोले, ' चिंता होती तो कोशिश करता | समझा ! बैठे - बैठे रोटियाँ थोड़े ही तोड़ता ! '
' ... और आप ? ' गुस्से में वह भरभरा जाता है |
अचानक मम्मी रोटी बेलना छोड़कर खड़ी हो गईं | पापा जा चुके थे ... | **
- पवन शर्मा
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पता -
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
ये मेरी अच्छी लघुकथाओं में से एक है. धन्यवाद सुनील जी.
ReplyDeleteहाँ , ये लघुकथा वास्तव में श्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक है |
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