यह कविता , पवन शर्मा की पुस्तक - " किसी भी वारदात के बाद " से ली गई है -
रहमान मियाँ
( 1 )
तुम निरे भोले हो
अब भी भाग रहे हो
मोह - ममता के पीछे
रहमान मियाँ
तुम्हारे वो दिन
कितने कष्टों भरे दिन थे
हारकर माँग की थी
ख़त में तुमने
अख्तर से कि
पाँच सौ भेज दो
जरुरत है
टका - सा जबाब दिया था अख्तर ने
हाथ तंग है - कैसे भेजूँ ?
और - तो - और
सलीम तो अख्तर से
दो हाथ आगे निकल गया
देखा था न रहमान मियाँ
उस दिन
तुमने
किस कदर बेशर्म बन कहा था उसने
खेत बेच दो और
मेरा हिस्सा मुझे दे दो
रहमान मियाँ
मैं जानता हूँ
बहुत रोये थे तुम
उस दिन
चटक गया था तुम्हारा दिल
भीतर कहीं
कोसा था अपने को बार - बार
ऐसी औलाद होने से तो
बेऔलाद रहना ठीक था
रह गया अनवर
तुम्हारे पास
तुम्हारे ग़मों को बाँटने
जैसा भी है - दोनों बड़ों से
अनवर ठीक है
रुखी - सूखी खाता है
तुम्हें भी खिलाता है
फिर भी रहमान मियाँ
ये सत्य है कि
तुम अभी तक
विस्मृत नहीं कर पाये
उन दोनों को
अब भी बड़बड़ाते रहते हो
अपने सपनों में
उन दोनों के नाम !
( 2 )
मुर्गे की बाँग के साथ ही
नित्य खुलती हैं आँखें
रहमान मियाँ की
लगाते हैं फ़जर की अजान
मज्जिद में जा कर
उठ जाता है गाँव
उनकी अजान से
शुरू हो जाता है
दैनिक कार्यों का सिलसिला
जाता है अनवर भी
दिहाड़ी पर
बिना नागा किये
( 3 )
आज नहीं उठाया बुढ़ऊ ने
हो जायगा नागा
कट जायेगी दिहाड़ी
बड़बड़ाता और झल्लता है अनवर
बड़बड़ाते और झल्लाते हैं
गाँव के लोग आज
रहमान मियाँ की
मज्जिद में फ़जर की अजान
अब नहीं होगी कभी भी **
- पवन शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर
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