यह कविता , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अक्षरों के सेतु " ( कविता - संग्रह ) से लिया गया है -
अँधेरे में
रात है ,
चाँद है ,
तारे हैं ,
- अँधेरे में
डूबे हुए |
रात है ,
चाँद है ,
तारे हैं ,
- अँधेरे में
ऊबे हुए | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
आज कल हर कोई उबा हुआ ही है । भावपूर्ण
ReplyDeleteआदरणीय संगीता स्वरुप जी आपको कविता पसंद आई इसके लिए आपको बहुत - बहुत धन्यवाद | आपने सही कहा मनुष्य का जैसा मन होता है , प्रकृति भी हमें वेसी ही दिखाई देती है |
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