यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
मधुवन में उर्वशी उतर आयी
नये - नये पातों की अरुणाई ,
नये - नये फूलों की तरुणाई ,
जगा अब नया भोर बहारों का |
अब सरसों के फूलों का जादू ,
हरियाली के सिर चढ़ बोल रहा ,
यौवन अपनी बाँह बढ़ाकर अब ,
कलियों का छवि - घूँघट खोल रहा ;
मधुवन में उर्वशी उतर आयी ,
ब्रह्मचर्य डोला पतझरों का |
जगा अब नया भोर बहारों का |
ढाकवनी के अब हर तरुवर का
पात - पात तक फूल बना जाता ,
महुओं की मादकता में डूबा
वन का एकाकी मन घबराता ;
नैतिकता बदनाम हुई जाती ,
सृजन हुआ मीना बाजारों का |
जगा अब नया भोर बहारों का |
फूलों की रेशमी निगाहों ने
भौरों को पागल कर डाला है ,
किन्तु तितलियों ने अपने मुख पर
जाने क्यों यह ताला डाला है ;
पर कोयल अभियोग लगाती है ,
दुरुपयोग करके अधिकारों का |
जगा अब नया भोर बहारों का | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुंदर । प्रकृति के सुंदर आयाम ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |
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