मैं आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ
मैं आम आदमी , आम आदमी ही रहना चाहता हूँ ।
नहीं बनना खास मुझे, आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ ।
अक्सर खास आदमी बनकर लोग, आम आदमी को भूल जाते हैं ।
औरों को तो छोड़ो खुद लोग , पुरानी पहचान भूल जाते हैं ।
मैं आम आदमी, आम आदमी ही रहना चाहता हूँ ।
पंख क्या मिले उड़ने को , लोगों ने अपनों से आँखें फेर ली ।
खून के रिश्तों को छोड़कर, लोगों ने शानो-शौकत से मोहब्बत कर ली ।
मैं आम आदमी , आम आदमी ही रहना चाहता हूँ ।
आदमी खास बनकर, माँ - बाप भाई - बहन को भूल बैठा ।
खासियत के चक्कर में , खुद अपनी औकात भूल बैठा ।
मैं आम आदमी , आम आदमी ही रहना चाहता हूँ ।
खासियत तो सिर्फ चार दिन की चाँदनी है ।
बाकी तो जहाँ में , आम आदमी बनकर ही जीना है ।
मैं आम आदमी , आम आदमी ही रहना चाहता हूँ।
नहीं बनना खास मुझे, आम आदमी बनकर जीना चाहता हूँ। **
- नरेंद्र आचार्य
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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