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कवि मुकेश गोगडे की कविता - " अदृश्य दुश्मन "

















अदृश्य दुश्मन


धरा से अम्बर तक मौत का अम्बार लगा है।
बदन को छुपाऊँ तो छुपाऊँ कहाँ।
अदृश्य दुश्मन के खेमें में आ गया हूँ मैं।
बचकर अब जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।।
                   
तकलीफ़ होती है यूँ जिंदगी को देखकर।
ज़मीर अपना सुलाऊँ तो सुलाऊँ कहाँ।
कोरोना बाँह फैलाये खड़ा है हर राह में।
उल्टे कदम अब जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।।

तबियत बिगड़ी ,मौत का अंदेशा हो गया।
दवा ख़ौफ की कराऊँ तो कराऊँ कहाँ।
सितमगर का डर सताने लगा है अब मुझे।
कर्म अपने धुलाऊँ तो धुलाऊँ कहाँ।।  **

                                  -  मुकेश गोगडे

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

2 comments:

  1. आदरणीय आलोक सिन्हा जी आपको इस ब्लॉग की यह कविता पसंद आई , इसके लिए आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |

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