आँख की गुस्ताख़ी
सच कहा,
आँख रुलाती है।
पर आँख रोती नही,
रोता मन है।
आँख सिर्फ ,
प्रतीक दिखाती है।
उद्गार मन में ,
उमड़ जाता है।
आँख देखती अच्छा तो,
मन विलाप क्यों करता।
मधुर बिम्ब दिखाती अगर
तो,
मन जाप क्यों करता।
आँख के पर्दे पर,
जो अभिनय होता है ।
उसका ही किरदार,
मन ग्रहण करता है।
प्रेम,घृणा,खुशी,गम,नृत्य,विलाप,
बिम्ब के अनुरूप उभरता है।
कोई हँसता - हँसता रोने लगता है।
कोई रोते - रोते हँसने लगता है।। **
- मुकेश गोगडे
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला - सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) फोन नम्बर - 9414771867.
अच्छी कविता है. बधाई.
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