इस लेख को कवि श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई } से लिया गया है -
मेरी छोटी आँजुरी
आस्थाओं का हिमवान
( भाग - 4 )
( भूमिका )
( भाग - 3 का अंश )
जिस समाज में साहित्य और
संस्कृति का चिन्तन मौलिक स्वकीय और सहज होगा , आरोपित नहीं , वहाँ साहित्य और
समाज दोनों का स्वस्थ विकास होना अवश्यंभावी है |
कविवर शर्मा जी का परम्परा को नमन करने का अपना तरीका है , जो अधिक मुखर है |
( क्रमशः - भाग - 4 )
कविवर शर्मा जी का परम्परा को नमन करने का अपना तरीका है ,
जो अधिक मुखर है | इसमें उन्होंने किसी प्रकार का भेदभाव नहीं
किया , एक समन्वयकर्ता की भांति स्वयं को अन्य सभी के साथ
जोड़ने का उपक्रम किया है | लोकनायक तुलसीदास और रससिद्ध
कवि सूरदास और निराला के प्रति उन्होंने भावभीनी श्रद्धांजलि दोहों
में विस्तार से प्रस्तुत की है | देखिये –
संस्कृति का लघु संस्करण , और धर्म का सार |
रामचरितमानस मणि , हिन्दी का
श्रृंगार ||
मानस क्या है ? अनुभवों का है सत्य
निचोड़ |
जीवन के हर प्रश्न का ,
जिसमें मिलता तोड़ ||
वचन , व्यंग , वक्रोक्ति कटु
या कि हास – परिहास |
लग जाती है बात जब , बनते
तुलसीदास ||
अष्टछापी कवि सूरदास पर दो दोहे देखें
–
अष्टछाप में मुकुटमणि , ओ
हिन्दी के सूर्य |
अनुपमेय है विश्व में सूर
तुम्हारा तूर्य ||
सूर मीठे गायन निपुण , काव्य
कला निष्णात |
रचते पद गौघाट पर विनय दीनता स्नात ||
इसी प्रकार मुक्तछन्द के जनक निराला का विस्तृत
परिचय दिया गया है |उनके प्रति कवि ने श्रद्धा व्यक्त करते हुए
महत्व की
बातें की हैं –
मुक्त छन्द के ओ जनक , ओ
शोषण के काल |
कालजयी युग प्रवर्तक , सांस्कृतिक वैताल ||
बंकिम , शरद , रविन्द्र त्रय
, हैं तुम में जीवंत |
अधुनातन कविकुल गुरु चरणों
नमन अनंत |
विद्रोही तेवर रहे रुढ़ि सभी
दीं तोड़ |
छन्द भाव भाषा सभी के मुँह
डाले मोड़ ||
महाप्राण को बाँधकर नहीं रह
सके वाद |
सच तो यह है वाद भी है सब
उनके बाद ||
फूलों सा नवनीत मन , वज्र
सरीखी देह |
अग्नि ह्रदय आँसू नयन
स्वाभिमान के गेह ||
उपर्युक्त महान पुरोधा कवियों के अतिरिक्त शर्मा जी ने
प्रायः विभिन्न विधाओं के प्रतिष्ठा प्राप्त हिन्दी साहित्य के पुरानी
और नई पीढ़ी के शताधिक / साहित्यकारों के वन्दन – अभिनन्दन
में अनेक दोहे लिखे हैं | उनकी यशस्वी रचनाओं को भी वे भूले
नहीं हैं | साथ ही ‘ होरी ’ जैसे अमर नायक का उल्लेख कर उसके
निर्माता प्रेमचन्द के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है | क्या ऐसी उदारता
आज के लेखकों और कवियों के स्वाभाव में देखी जा सकती है |
खेद है कि श्रद्धा प्रकट करने में लोग अपनी हटी समझते हैं | आज
का साहित्यकार केवल अपनी सोचता है , अपने कैरियर और
पुरस्कारों के बैचेन रहता है और सारी दुनियाँ की शिकायत करता है
| यह मनोरोग है , जो आज के साहित्यकारों में व्यापक रूप से
पाया जाता है | इससे हिन्दी को उबारने की आवश्यकता है | शर्मा
जी अकुंठ भाव से अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं | एक दोहा प्रस्तुत
है –
शिखर निराला गीत के , बच्चन’
, सुमन’ , नरेन्द्र’ |
ठाकुर’ , त्यागी’ , रंग’ ,
शिशु’ , नीरज’ , औ’ वीरेन्द्र’ ||
‘ होरी ’ की व्यथा – कथा में कवि श्रीकृष्ण शर्मा को अपने
जीवन के अभावों से सतत जूझते रहने का आभास मिलता है | ‘
होरी सा जीवन गया ’ शीर्षक प्रकरण में शर्मा जी ने अपने
अन्तर्मन के तूफ़ान को ही वाणी दे डाली है | यह एक ऐसा यथार्थ
आत्मनिवेदन है , जिसमें करुण चीत्कार की प्रतिध्वनियाँ गूँजती हैं
| कहीं मूक हाहाकार है , तो कहीं मुखर रोदन | आत्माभिव्यक्ति
का इतना मार्मिक चित्रण दे पाने में कवि अन्य प्रकरणों की तुलना
में कहीं आगे है और सर्वाधिक सटीक और सार्थक भी | इस प्रसंग
के सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं , परन्तु उद्धरण प्रस्तुत करने
की सीमा है | अतः एक दो नमूने देखिए और बताइए कि समूचे
दोहा – संसार में इस जोड़ के दोहे और
कितने हैं –
आँखों में सागर भरे , मन पर
धरे पहाड़ |
देह हुई मरुथल मगर , फिर भी
फोड़ें हाड़ || **
( आगे का भाग , भाग – 5 में )
- डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
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ReplyDeleteआस्थाओं का हिमवान
ReplyDeleteअभी तक चारों भाग आस्थाओं का हिमवान पढ़ने को मिले हैं. कवि ने गंभीरता के साथ लेखन किया है..आगे के भाग भी रूचिकर और पठनीय होंगे. बधाई.
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ReplyDeleteधन्यवाद परम आदरणीय पवन शर्मा जी | आपकी टिपण्णी साहित्य के क्षेत्र में विशेष महत्व रखती है | यह हमारे लिए बहुत उत्साहवर्धक है |
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