इसे कवि श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है | यह पुस्तक की भूमिका है -
मेरी छोटी आँजुरी
आस्थाओं का हिमवान
भूमिका ( भाग - 7 )
भाग - 6 का अंश -
... कभी संघर्षों की छाया में कुरुक्षेत्र का स्मरण आता है तो कभी विजयपर्व पर रची गयी
दीपमालिका का सुकुमार सौंदर्य | अंधकार और प्रकाश का सनातन संघर्ष नये रूपों में इस
काव्य में संकलित किया गया है धृष्ट या अशिष्ट बलात्कारी आचरणों के लिए उसकी
भर्त्सना भी की गयी हे | ...
भाग - 7
... तिमिर की धृष्टता और सिन्धु
का आर्तनाद दृष्टव्य है और बूढ़े पहाड़ का चुपचाप देखना उसकी विवशता ही है –
मर्यादा की सब परिधि , तिमिर
गया है लाँघ |
घेर घार कर चाँदनी की उघाड़
दी जाँघ ||
आर्तनाद सुन सिन्धु का ,
खाती लहर पछाड़ |
मूक स्तब्ध सा देखता , बूढ़ा
अचल पहाड़ ||
दीपपर्व का एक रूप – इस में संघर्ष और
जिजीविषा विद्यमान है –
इस गहरे तम – तोम को , गयी
अमावस लीप |
किन्तु दीवाली सज रही शत –
शत ज्योतित दीप ||
सूर्य चन्द्रमा हारकर , छोड़
गये मैदान |
काल रात्रि से युद्धरत , पर
नन्हा दिनमान ||
दीपक के वर्णन में व्यंजनाएँ उभरती है
–
प्राण गलाकर साँस का , निशि
भर रहा समीप |
सुबह हुई तो मनुज ने , बुझा
दिया वह दीप ||
निशि के श्यामल अंग पर , डाल
प्रकाश दुकूल |
जूड़े में खोंसे दिये ने बाती
के फूल ||
सतसई का दूसरा पक्ष यथार्थ जीवन का दुर्दर्ष
रूप है | कवि ने युग यथार्थ को सामने रखकर एक चित्रशाला सजायी है | युग का सजीव
इतिहास ही यहाँ अंकित है | कवि की कल्पना चतुर्दिक फैले घटना प्रसंगों को निरुपित
करती है | अनेक समस्याएँ हैं , जिनकी जड़े गहरी हैं | चाहे घर – घाट की हों , चाहे
व्यापार और राजनीति की , चतुर खलनायकी में सिद्धहस्त लोगों के हाथ में समय की
बागडोर आ गयी है और वे इस देश की प्रजा को जैसे चाहें नाच नचाते रहते हैं | आम
आदमी की लाचारी है कि वह भूख , दरिद्रता , लूट और शोषण से त्रस्त बना रहे और कुछ न
कर सके | वातावरण अत्यन्त जटिल और विषाक्त है | कवि श्रीकृष्ण शर्मा जी ने अनेक
प्रश्न खड़े कर दिए हैं किंकर्तव्यविमूड़ता की स्थिति है | एक से एक उद्धरणीय प्रसंग
यहाँ उपस्थित हैं | इस प्राचीन आदर्शवादी देश का मनोबल जीर्ण – शीर्ण अवस्था में
पहुँच चुका है , जीवन की राह कठिनाइयों से भरी हुई है | समाज – सेवा , धार्मिक
अनुष्ठान , स्वास्थ्य , शुचिता – स्वच्छता आदि के लिए बड़े – बड़े प्रकल्प बनते हैं
पर सभी कागजों पर ही बनकर रह जाते हैं | सर्वत्र धोखाधड़ी और पाखण्ड का साम्राज्य
है | संसद हो या न्याय का मंदिर खुलेआम लूट , भ्रष्टाचार और तानाशाही , हिंसा और
आतंक से ग्रस्त प्रजातंत्र का मज़ाक बनाने में संलग्न हैं –
अर्ध्दशती में हो गया , अभिशापित परिवेश |
त्रस्त – पस्त – सन्तप्त जन ,
दुख दारिद्रय व क्लेश ||
फुर्र हो गये स्वप्न सब ,
जीना हुआ मुहाल |
चौतरफा हैं भेड़िये औ’ खून के
दलाल ||
झुकी रीढ़ चश्मा चढ़ा , बोझ
किताबी ओट |
उफ़ बच्चों को बन गया , शाप
ज्ञान विस्फोट ||
किस्से गुड़िया , लुकछिपी ,
पन्नी , तितली , फूल |
बस्ते के बोझा तले , गया
बचपना भूल ||
लोकतंत्र में भी हमें , नहीं मिल रही
राह |
हर नेता उभरा यहाँ , बनकर
तानाशाह ||
इन्द्रप्रस्थ दिल्ली बनी ,
कौरव सत्ताधीश |
पाण्डव निर्वासित मगर ,
दल्लों को बख्शीश ||
जले गरीबी मोम सी , महंगाई
सी आग |
खेल रही सत्ता मगर , सुख
सुविधा से फाग ||
घूस दलाली तस्करी , घोटालों
का राज |
मुश्किल हुआ गरीब को , मिलना
रोटीदाल ||
00
त्यागी बलिदानी गड़े , बने
नींव की ईंट |
उनके ऊपर हैं खड़े , आप
स्वारथी ठीठ ||
उत्तर देगा कौन अब , प्रश्न
खड़े बेहाल |
विक्रम नेता बन गया , टंगा
ठगा बेताल ||
जो धन – बल के सामने , करता
तिकड़ी नाच |
वही न्याय जन के लिए , अंधा
क्रूर पिशाच ||
भ्रष्ट , धृष्ट निष्कृष्ट औ’
लोलुप तथा लबार |
बने आज भी देश में , हैं
झंडाबरदार ||
चिथड़े – चिथड़े हो चुका ,
बदलो सभी प्रबन्ध |
संविधान में हैं लगे , जगह –
जगह पैबन्द || **
(
शेष भाग – 8 में )
- डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867
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