यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ " से ली गई है -
बोझ
इन दिनों वह बेहद मानसिक
तनाव में जी रहा है | जीए भी तो क्यों नहीं ! घर में डॉ जवान बहनों को पाल रहा है |
अपने भी तो दो बच्चे हैं | अच्छा हुआ कि उसने नसबन्दी करवा ली , नहीं तो उसका बड़ा
लड़का भी उसी की तरह चार बहनों के बीच अकेला रहता | महानगर में जैसे – तैसे गुजारा
चल रहा है | कहीं भी बात जम नहीं रही है | जम जाए तो दोनों बहनें और निपट जाएँ |
ऑफिस में अपर डिवीजन की हैसियत ये तक नहीं है कि अपनी बहनों के लिए लोअर डिवीजन
क्लर्क भी खोज सके | डिमाण्ड दस – पन्द्रह के नीचे नहीं उतर रही है |
आज फिर एक पत्र ने उसे मानसिक तनाव से
ग्रसित कर दिया | मना कर दिया है |
“ स्साले ! ” वह झल्लाया ... किसके ऊपर ... पता नहीं !
“ इधर सुनिए न | ” भीतर से पत्नी ने आवाज लगाई |
“ क्या है ? ” वह अन्दरवाले कमरे में घुसते हुए बोला |
“ ये गेहूँ का बोरा उठवा के पलंग के
नीचे रखवा दीजिये जगह घिरी हुई है | ”
पत्नी ने कहा |
उसने पत्नी के साथ गेहूँ का बोरा उठाना
चाहा | चवालीस साल की उम्र जवाब देने लगी | बोरा उठ नहीं पाया |
बोरा उठाने का प्रयास करती हुई पत्नी
हाँफती – हाँफती बोली , “ देखो कल मँझली
की एग्जामिनेशन फीस जमा करनी है | कल आखिरी दिन है , नहीं तो परीक्षा में नहीं बैठ
पाएगी | ”
“ देखो – देखो , अब मुझसे इतना बोझ
नहीं उठ सकता ! ”
वह न जाने किस जुनून में झल्ला गया ...
झल्लाता ही गया ! ” **
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बढ़िया है, मेरी पसंदीदा लघुकथा है.
ReplyDeleteस्वागत है |
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