इसे श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) से लिया गया है | यह पुस्तक की भूमिका है -
मेरी छोटी आँजुरी
आस्थाओं का हिमवान
( भूमिका )
आस्थाओं का ललित आख्यान है कविता |
जातीय अस्मिता कविता के माध्यम से नये – नये रूपों में अपनी गौरव – गाथा को
दोहराती है | आत्म – निरिक्षण और आत्मलोचन के मार्ग से व्यक्ति और समुदाय के
अभ्युदय और निश्रेयस का अनुसंधान करती है कविता | सच्ची कविता स्वानुभूति का सहज –
सरल और सौख्य का मुक्तहस्त दान है | कविता इतिहास से ऊर्जा ग्रहण करती और आत्मा के
रस राग में पान कर आने वाली पीढ़ियों के लिए चिरन्तन सुख – संजीवनी का विधान करती
है | किसी भी राष्ट्र की पुष्टि और प्रसन्नता के लिए कविता एक टॉनिक है | इसीलिए
कविता अमृत है , परम्परा है , परिवर्तन की दुदुंभी और नित्य नूतनता का उद्घोष है | कवि अतीत का समृद्ध
चेतना – पुन्ज और भावी के लिए दीपस्तम्भ की तरह प्रगति का दिशासूचक धुर्व नक्षत्र
है | इन्हीं अर्थों में श्रीकृष्ण शर्मा जी की ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ की पंक्ति –
पंक्ति को पढ़ने की आवश्यकता है , ऐसा मैंने अनुभव किया है |
अपनी दोहा - सतसई को ‘ मेरी छोटी
आँजुरी ‘ नाम देने के पीछे कवि की गहरी सूझबूझ और शालीनता स्पष्ट दिखाई देती है |
जो सौम्यता और विनम्रता संग्रह में आदि से अन्त तक संचित और सुरक्षित रही है , वह
स्तब्धकारी है | यह आधुनिकतावादी साहित्यिक आन्दोलनों और प्रदूषित सन्दर्भों में
समाज की जड़ता पर नपी – तुली भाषा में की गई चोट है | ऐसा वही कर सकता है , जिसे
अपनी उन्नत परम्पराओं , जीवन के प्रति गहरी आस्थाओं तथा बौद्धिक वर्चस्व का सम्यक
और संतुलित ज्ञान हो और संस्कारों की निष्कम्प दीप्ति को आत्मसात कर साधना के पथ पर
निरन्तर आगे बढ़ता रहा हो | यह आश्चर्य की बात है कि ऐसी महनीय काव्य प्रतिमा जिसने
जीवन भर प्रकाश लुटाया हो , अपनी आँचलिक सीमाओं को लाँघकर देर से प्रकाश में आ रही
है |
दोहे और उसमें रची अपनी रचनाओं के विषय
में कवि ने स्वयं संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया है | ठीक उसी तरह दोहों के लघु
कलेवर में उसने गहरे अर्थ भर दिये हैं | ‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ नामक इस सतसई का फलक
व्यापक है और दृष्टि उदात्त | भारतीय संस्कृति , इतिहास , काव्य , काव्य भाषा ,
व्यक्ति , परिवार और राष्ट्र – अर्थात् जीवन और जगत के सभी सरोकार कवि की चिन्तन
परिधि में सिमट आये हैं | कालक्रम से राष्ट्रीय जीवन की सहज गति में आने वाली
विकृतियों और विरूपताओं की ओर भी कवि ने सशक्त भाषा में संकेत किए हैं | भारत भूमि
की सुन्दरता और जीवन की सहज अनुभूतियों के सजीव बिम्ब खड़े करने में कवि सिद्धहस्त
है | हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों की परम्परा को जिस निष्ठा से इस ग्रंथ में
संजोया गया है , वह अनुकरणीय है |
‘ मेरी छोटी आँजुरी ‘ की प्रस्तुति
विभिन्न विषयों के गुच्छों में दोहों को आबद्ध कर की गयी है | प्रत्येक गुच्छ एक सूत्र में पिरोये
विचारों , टिप्पणियों अथवा आलोचनाओं का निबन्धन है | संग्रह में किसी विशिष्ट
दोहों के पूर्वार्द्ध अथवा उतरार्द्ध के एक चरण को शीर्षक बना दिया गया है | इन
विविध विषयों या प्रकरणों को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है | यद्दपि
ऐसा कठोर दृष्टिकोण संकेतिक नहीं है , तो भी पहला भाग अतीत के चिन्तन और गौरव को
रेखांकित करता है | यहाँ भारतीय जीवन का एक संतुलित चित्र उपस्थित किया गया है |
जीवनादर्शों के प्रति यहाँ कवि पूर्ण आस्था और विश्वासों के प्रति अपनी
समर्पणशीलता विवेदित करता है | निम्न दोहों से यह स्पष्ट होगा –
पता न किन – किन पूर्वजों ,
से हम हैं मौजूद |
बोलो फिर कैसे कहें , ईश्वर
का न वजूद ||
‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ सम्मुख
सिन्धु अपार |
ओ आकाशी देवता ! अर्ध्य करो
स्वीकार ||
इसी प्रकार द्वितीय भाग में प्रकरण 30 से अंत तक वर्तमान जीवन की विसंगतियों को रेखांकित किया गया है – **
( आगे का भाग – 2 में )
- डॉ. योगेन्द्र गोस्वामी
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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