Followers

2.3.21

कवि अजय विश्वकर्मा की ग़ज़ल - " आबो - हवा बदल गई "

 










आबो - हवा   बदल  गई


आबो - हवा   बदल  गई,  मौसम  बदल  गए

मुफ़लिस  की  रोटी  दाल से धनवान पल गए

 

मय  की  ख़ता न जानिए,नज़रों का था क़ुसूर

बस इक निगाहे-नाज़ थी जो हम फिसल  गए

 

क्या आपकी  निगाह  में  आब-ए- हयात था

जिसको  पिलाया  आपने  वो सब मचल गए

 

अब  ज़िन्दगी  की  राह  में  तन्हा बचे हैं हम

था जिसका इन्तिज़ार वो कब  के  निकल  गए

 

पत्थर का दिल है आपका सब झूठ कह रहे

मेरी मुहब्बतों से  तो  पत्थर  पिघल  गए  **

 

                                                        - अजय विश्वकर्मा


                               मण्डी बमोरा,जिला -विदिशा,मध्यप्रदेश

------------------------------------------------------------------------------------------


संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


2 comments:

  1. आलोका सिन्हा सर बहुत बहुत आभार आपका इस हौसला अफ़्ज़ाई के लिए🙏🙏

    ReplyDelete

आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |