यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ " में से ली गई है -
लाचारी
मुझे ऐसी बातों से कोफ्त है
| फिजूल बातें ... जो हो चुका , उसको दुहराने से क्या लाभ ? लेकिन अम्मा हैं कि
हमेशा गढ़े मुर्दे उखाड़ती रहती हैं | कई बार मामाजी को पत्र में लिखवा भी चुकी हैं ...
मेरे द्वारा ... कुसुम के द्वारा ... और आज जब से मामाजी आए हैं , तब से अम्मा का
मुँह फूला हुआ है | घर में कोई मेहमान आ जाए
, तब तो खुश रहना चाहिए |
मामाजी नीची नजरें करके खाना खाते जा
रहे हैं | बाबू भी पास बैठे खा रहे हैं | कुसुम अम्मा के पास बैठी है | मैं दरवाजे
के बाहर चटाई पर बैठा हूँ|
“ तोए कम – से – कम आ तो जानो थो |
” अम्मा बोलीं |
मामाजी कुछ नहीं कहते | चुपचाप खाना
खाते रहे |
“ जानत है ... मामा होवे के बावजूद
हमने दूसरे के हाथ से मामा का नेग करवाओ थो ... अरे , आ तो जातो कम – से – कम ...
कुछ करतो चाहे नईं करतो | शादी में हमारी इज्जत तो बच जाती | सभी के मुँह पे जेई
बात थी कि भान्जी की शादी हो रही है ... मामा का कहीं पता नई है | ” अम्मा फिर से पुरानी आदत पर आती जा रही हैं |
जिसके ऊपर बिगड़ जाएँ ... जो भी सुनाना होता है ... सुना देती हैं |
“ भौत इच्छा थी आवे की ... आ नईं पाओ
जिज्जी | सारी जिन्दगी तोए बोलवे कूँ हो गयो | ”
मामाजी बोले |
“ काए के लाने नईं आ पाओ ? ”
“ ... ” मामाजी खाना खाते रहे |
“ बता न , काए के लाने नईं आ पाओ ” अम्मा फिर पूछती हैं |
“ बस्स , जेई मत पूछ जिज्जी ! ” एकदम मामाजी के चेहरे पर लाचारी उमड़ आई | मैनें
स्पष्ट रूप से देखी उनके चेहरे की लाचारी ... अम्मा ने देखी या नहीं ... पता नहीं !
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- पवन शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत बहुत आभार और धन्यवाद सुनील जी.
ReplyDeleteआपकी शानदार लघुकथा के लिए आपको भी ह्रदय से बहुत - बहुत शुभकामनाएँ | यह जीवन का सत्य है |
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