यह नवगीत , कवि श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक " एक नदी कोलाहल " से लिया गया है -
बाजों की दहशत में
हाथों में
नोकीले पत्थर लिये हुए ,
अन्धी - तंग सुरंग ,
होठों सब सियें हुए |
साँसों विष है ,
विषधर पाले जैसे - जी ,
लाक्षागृह की
आग रही है मन में जी ;
शापग्रस्त घाटी में
सब पग दिये हुए |
आग , खून ,
चीखें हैं औ ' चिल्लाहट है ,
गूँज रही
आदमखोर गुर्राहट है ;
बाजों की दहशत में
चिड़िया जिये हुए | **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteआदरणीय आलोक सिन्हा जी , आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |
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