यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से लिया गया है -
सारी रात
गर्मी की उमस थी , सब लोग छत पर बैठे खाना खा रहे थे |
मैं कई दिन बाद घर आया हूँ | पिताजी पूछते जा रहे थे - ' क्या हाल है ? ... कैसा चल रहा है ? ... सब ठीक तो है न ? ... बहू - बच्चों को ले आता तो ठीक रहता ... बहुत दिन हो गए उन्हें देखे बिना ... मन दौड़ता रहता है बच्चों के पीछे ... | '
मैं हाँ ... हूँ में उत्तर दे रहा था |
मेरी थाली में रोटी ख़त्म देखकर माँ ने पूछा , ' रोटी रखूँ '
' नहीं ... पेट भर गया | ' कहते हुए मैंने थाली पर अपने हाथ रख लिए |
' एक रोटी ले ले न ! ' माँ ने आग्रह किया |
मैंने फिर सिर हिलाकर मना कर दिया |
' ले - ले ... तू लेगा , तो मैं भी एक रोटी और ले लूँगा | ' पिताजी बोले |
' एक तो क्या आधी भी नहीं चल पायेगी | ' मैंने साफ़ मना कर दिया |
' तेरी मर्जीं ... ! पिताजी ने कहा |
थोड़ी देर बाद हम लोग खाना खाकर उठ गए |
मुझे सारी रात नींद नहीं आई | लगता रहा कि मैंने पिताजी को खाने की थाली पर से भूखे पेट उठा दिया है ! **
- पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
धन्यवाद सुनील जी, लघुकथा को प्रकाशित करने के लिए.
ReplyDeleteइस शानदार लघुकथा के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई |
Deleteबहुत सुन्दर
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