यह पीठिका , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
पीठिका ( भाग - 5 )
देवेन्द्र जी आशंकित थे कि
कहीं मैंने लिखना तो बन्द नहीं कर दिया | इसलिए वे बार – बार लिखते रहे कि मैं
लिखना बन्द न करूँ और अपनी पूर्व – लिखित रचनाओं को पत्र – पत्रिकाओं में
प्रकाशनार्थ भेजता रहूँ | मैं कृतज्ञ हूँ अभिन्न बन्धु पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘
इन्द्र ’ के प्रति कि उनकी प्रेरणा से ही 1986 में पत्र – पत्रिकाओं से मेरा पुनः
जुड़ाव हुआ |
( भाग – 5 )
यद्यपि इस सम्पूर्ण अवधि के दौरान मेरा
लेखन बन्द नहीं हुआ था , फिर भी लेखनी के बल पर अर्जित मेरी पूर्व साहित्यिक पहचान
प्रकाशन के अभाव में पच्चीस वर्षों की इस सुदीर्घ निर्वासन - अवधि के गहन अतल में कहीं खो गयी | मैं यह
भलीभाँति जानता था कि साहित्य – जगत में अब मेरा लौटना उतना आसान नहीं है , किन्तु
मैं हारा नहीं | इस लम्बी खाई को पाटने के लिए मैं नये सिरे से भग्न सेतु के
पुनर्निर्माण में जुट गया | फिर से मैं रचनाएँ भेजने लगा और वे पत्र – पत्रिकाओं
में छपने लगीं | उनके माध्यम से अनेकानेक सृजन – रत संवेदनशील रचनाकारों से
सम्पर्क स्थापित हुआ , जिनमें अधिकांश से स्नेह – सम्बन्ध और आत्मीयता है |
मैं 2001 में अड़सठ वर्ष की उम्र में
मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् के आर्थिक सहयोग से ही ‘ अक्षरों के सेतु ’ के निर्माण
में सफल हो पाया | मेरे इस प्रकाशित काव्य – संग्रह में 1965 से 1976 के मध्य लिखी
कविताओं में से बावन चयनित कविताएँ संग्रहित हैं | फिर फरवरी 2006 में कहीं जाकर
मेरी सर्जना पर ‘ फागुन के हस्ताक्षर ’ हो पाये | इस गीत संग्रह में 1954 से 1965
की अवधि में लिखे गीतों में से चवालीस गीत और एक लम्बी शोकान्तिकी संकलित है | ...
और अब मेरे समक्ष है ‘ एक नदी कोलाहल ’ , यथार्थ का भयावह दौर | आम आदमी के सामने
उपस्थित एक कठिन और बेहद चुनौतीपूर्ण समय जिसमें उसकी अस्मिता दाँव पर लगी है | इस
नवगीत – संग्रह में 1964 से 1995 की अवधि में लिखे नवगीतों में से चुने हुए कुल
सैंतालीस नवगीत संग्रहीत हैं | ( सूचनार्थ निवेदन है कि दुर्भाग्यवश 1981 से 1990
की अवधि में लिखी मेरी रचनाओं की कॉपी बाहर आते – जाते समय यात्रा के दौरान कहीं
छूट गयी , गिर गयी अथवा किसी ने चुरा ली , ज्ञात नहीं है | खैर ... ) इन गीतों में
मौजूद हालात , इन हालातों के लिए उत्तरदायी नेतृत्व व व्यवस्था और उनसे पीड़ित आदमी
का दर्द तो है ही , संघर्ष हेतु आमजन का आह्वान और आशावादी स्वर भी इनमें व्यंजित
है | उसे उकेरने और अभिव्यक्त करने के प्रयास में , मैं किस सीमा तक सफल हुआ हूँ ,
इसका आकलन और निर्णय करना तो सुधि सहृदय पाठकों के अधिकार – क्षेत्र में है |
इन गीतों को इतने सुन्दर रूप में आपके हाथों
तक पहुँचाने में प्रिय बन्धु श्याम जी ( ‘ निर्मम ’ ) और उनके सुयोग्य पुत्र प्रिय
पराग कौशिक ( नियामक अनुभव प्रकाशन ) की मुख्य भूमिका है | अतः उनके प्रति
अनुग्रहित हूँ | अन्त में आदरणीय अग्रजों , अपने समवय मित्रों और अनुजों , जिनसे
मुझे प्रेरणा , स्नेह , सम्मान और आत्मीयता मिलती रही है , के प्रति अपनी कृतज्ञता
ज्ञापित करता हूँ | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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