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22.2.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा - " पीठिका " ( भाग - 3 )

यह पीठिका , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -






                     पीठिका


( उसके केन्द्र में जीवन का कोई राग या बोध होता है , जिसे वह अपने प्रगतिशील सोच और सतत अभ्यास द्वरा नई अर्थवत्ता प्रदान करता है तथा ह्रदय और बुद्दि के संतुलन द्वारा प्रभावी बनाता है | ) ...

 

( भाग – 3 )

 

          नवगीतकार अपने युग के अनुभवों को संकेत से और संक्षेप में कहता है | इस रूप में नवगीत बड़ी बात को छोटे में कहने की प्रविधि है अर्थात इसमें संवेदना की सघनता होती है | विषयवस्तु की यही सघनता अथवा प्रगाढ़ सान्द्रता यांनी संक्षिप्तता ही उद्वेलित करती है और गीत को बेधक और प्रभावशाली बनाती है | फलस्वरूप अभिव्यक्ति को शक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से शिल्प के नये उपकरणों की तलाश की गयी और बिम्ब – विधान , प्रतीक – योजना , मिथक तत्व , छन्द – संरचना , भाषा आदि को नये ढंग से इस्तेमाल किया गया है , जिससे गीत के कथ्य , कहन और शिल्प सभी में बदलाव आया है |

          नवगीत की सबसे महत्वपूर्ण शिल्पगत विशेषता उसकी बिम्ब – योजना है | अपने कथ्य को प्रभावशाली बनाने के लिए नवगीतकार बिम्बों का सहारा लेता है | बिम्ब किसी बस्तु का यथार्थपरक किन्तु ‘ इमेजनरी शब्द – चित्र ’ ( साकार मानस – छवि ) है , जो कल्पना द्वारा ऐन्द्रिय अनुभवों के आधार पर निर्मित होता है | इनका मुख्य कार्य अनुभूति वस्तु का प्रस्तुतिकरण है | बिम्बों के माध्यम से ही कथ्य को एक ठोस और स्थूल रूप मिलता है तथा रचनाकार की अनुभूतियों और संवेदनाओं को पाठक अपने अन्तर्मन में महसूसता और रसानुभूति ग्रहण करता है | इसलिए डॉ0 शंभुनाथ सिंह ने बिम्ब को काव्य की आत्मा बताया और उसे नवगीत के लिए अनिवार्य माना है | नवगीत में वस्तुपरक प्रत्यक्ष बिम्बों की प्रमुखता है | बिम्ब – रचना बड़े कथ्य को एक छोटे चित्र द्वारा व्यक्त करने की कला और जटिल मनोभावों को सहज बनाकर प्रस्तुत करने की एक विधि है | बिम्ब ही अनुभूति को व्यापक सन्दर्भ और गीतों को व्यंजकता व सांकेतिकता प्रदान करते हैं | किन्तु यह आवश्यक है कि बिम्ब  सहज , सरल , स्वतः – स्फूर्त और सम्प्रेषणीय हों अथवा अतिशय बिम्बाग्रह तथा दुरूह , जटिल और सूक्ष्म बिम्बों के प्रयोग से बिम्बों की भीड़ में कथ्य की सहजता विलुप्त हो जाती है |

          विषयवस्तु का सान्द्र होते – होते संक्षिप्त होकर ‘ प्रतीक ’ हो जाना ही कविता है | बिम्ब ही रूढ़ होकर प्रतीक बन जाते हैं और किसी वस्तु की प्रतीति करवाते हैं | बिम्ब – रचना अर्थ – सम्प्रेषण की पूर्णता के लिए प्रतीकमूला भी होती है | प्रतीकों के कारण गीत में भाव – संकलन , अन्विति और संक्षिप्तता अपने आप आ जाते है | नवगीत में प्रतीक अधिक हैं , किन्तु मिथक अपेक्षाकृत कम | उसकी प्रतीकात्मकता अर्थ की अनेक दिशाएँ खोलती हैं |

          नवगीतकार कथ्य के अनुकूल अपना छन्द स्वयं रचता है और अन्त्यानुप्रास व पद – बन्धों को भी अपनी तरह से ही विन्यस्त करता है | वह जानता है कि छन्द की लय एक ख़ास तरीके से संयोजित शब्द – विन्यास से बनती है , जिससे कविता में स्मरणीयता का गुण पैदा होता है | अब लय से भी आगे बढ़कर पद – योजना की आन्तरिक व वाह्य खनक तक नवगीत चला गया है |उसमें अनुभूति को संकलित कर शब्द के लयात्मक स्पन्दन ( ध्वन्यात्मकता ) में निहित लय में गीत लिखे गये हैं | लोकधुनों को युगीन चेतना के अनुरूप नया रूप दिया गया है और लय , तुक और काव्यात्मकता को बरकरार रखते हुए नए मीटर खोजे हैं | फलस्वरूप नवगीत में छन्दों का वैविध्य और नवता दोनों है | उसमें लयात्मकता और नाद – योजना की संयुक्ति है |

          नवगीत ने भाषा को एक नया मुहावरा दिया है | उसकी भाषा में हिन्दी की लोक बोलियों से लेकर इतर भाषाओं तक से लिए गए शब्द मिलते हैं , जिनसे भाषा की ताकत बढ़ी है,वह सम्पन् और  विलक्षण हुई है तथा भाषा का नया सौन्दर्य शास्त्र नवगीत ने रचा है | **

( इससे आगे का , भाग – 4 में पढ़िए )  


                 - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

 

2 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणीय आलोक सिन्हा जी |

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