यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से ली गई है -
गंध
‘ अरे , आप यहाँ पधारे
महाराज ... हमारे गाँव ... हमारे घर ! ’
कहता हुआ बुधना उनके पैरों में बिछ गया |
उन्होंने खादी के कुर्ते की आस्तीनें
ऊपर चढ़ाई | पीछे मुड़कर भीड़ की ओर देखा और होठों पर मुस्कान लाकर बुधना को उठाते
हुए बोले , ‘ हाँ भई ... हम आए हैं
तुम्हारे गाँव ... तुम्हारे दुःख – दर्द को सुनने के लिए | ’
बुधना के साथ खड़े गाँव के आदिवासी कभी
उन्हें देखते , तो कभी उनके पीछे खड़ी भीड़ को | भीड़ में उनके चहेते और बड़े – छोटे
अधिकारी थे | हर पाँच वर्ष में बुधना के ‘
महाराज ’ गाँव के आदिवासियों से मिलने आते
और उनके दुःख – दर्द को पूछते | बाकी के दिनों में अक्सर गाँव के ये आदिवासी अपने
दुःख – दर्द को उन तक अपने पत्रों या आवेदन – पत्रों के द्वारा पहुँचाते |
बुधना ने एक तरफ खड़े होकर अपने अठारह
वर्षीय लडके बिसना से कहा , ‘ देख रेबिसना
, जे ही अपने करतार हैं ... अन्नदाता हैं ... पाँव लाग ... पाँव ! ’
बिसना भी उनके पैरों में बिछ गया |
उन्होंने फिर खादी के कुर्ते की आस्तीनें ऊँपर चढ़ाई और बिसना को उठाया |
‘ देख बब्बा ... महाराज को कुरता कैसे
झक्क – झक्क कर रओ है!’ उन्हें दूसरों
से बातें करते देख बिसना धीरे से बुधना से कहता है |
‘ महाराज जमीन पर चलत हैं का जो अपन की
बंडी जईसे उनको कुरता मैलो – चीकट हो जाए ... महाराज बड़ी – बड़ी कार में चलत हैं और
आसमान में उड़त हैं | ’ बुधना ने कहा |
‘ तबई तो उनके पैरों में धूल तक नईं
लगी | ’ बिसना उनके पैरों को देखता हुआ
बोला |
अचानक भीतर से बुधना की घरवाली निकलकर
आई और महाराज के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई |
‘ आप ठीक हैं ना ! कोई तकलीफ तो नहीं
है ? ’ उन्होंने पूछा |
‘ सबई ठीक – ठाक है ... आपकी किरपा है |
’ बुधना की घरवाली ने कहा |
अचानक उन्होंने अपने नाक पर रुमाल रखा , ‘ ये कैसी स्मेल आ रही है ? ’
उनके पीछे खड़े चहेते और बड़े – छोटे अधिकारी
चौंके , ‘ लगता है सर ! कोई चीज सड़ रही है
अथवा कोई चूहा , कुत्ता या जानवर मर गया है ... सर ... ये उसकी स्मेल है ! ’
‘ हाय दैया ! ... मैं रोटी बना रही थी ... तवे पर छोड़
आई ... सगरी जल गई ! ’ कहती हुई बुधना की घरवाली भीतर
की ओर तेजी से चली गई | **
- पवन शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर (
राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteकभी दूसरों के ब्लॉग पर भी कमेंट किया करो।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
बहुत - बहुत धन्यवाद शास्त्री जी | आपको भी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बधाई | आप इस ब्लॉग में अपनी रचनाएँ भेजेंगे तो यह ब्लॉग धन्य हो जाएगा | आपकी रचनाओं की इस ब्लॉग में हमेशा ही प्रतीक्षा रही है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक सिन्हा जी आपका ह्रदय से आभार |
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