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24.1.21

लघुकथाकार , कवि , कहानीकार - पवन शर्मा की लघुकथा - " गंध "

 यह लघुकथा , पवन शर्मा की पुस्तक - " हम जहाँ हैं " ( लघुकथा - संग्रह ) से ली गई है -






                      गंध

 

‘ अरे , आप यहाँ पधारे महाराज ... हमारे गाँव ... हमारे घर ! ’  कहता हुआ बुधना उनके पैरों में बिछ गया |

          उन्होंने खादी के कुर्ते की आस्तीनें ऊपर चढ़ाई | पीछे मुड़कर भीड़ की ओर देखा और होठों पर मुस्कान लाकर बुधना को उठाते हुए बोले ,  ‘ हाँ भई ... हम आए हैं तुम्हारे गाँव ... तुम्हारे दुःख – दर्द को सुनने के लिए | ’

          बुधना के साथ खड़े गाँव के आदिवासी कभी उन्हें देखते , तो कभी उनके पीछे खड़ी भीड़ को | भीड़ में उनके चहेते और बड़े – छोटे अधिकारी थे | हर पाँच वर्ष में बुधना के  ‘ महाराज ’  गाँव के आदिवासियों से मिलने आते और उनके दुःख – दर्द को पूछते | बाकी के दिनों में अक्सर गाँव के ये आदिवासी अपने दुःख – दर्द को उन तक अपने पत्रों या आवेदन – पत्रों के द्वारा पहुँचाते |

          बुधना ने एक तरफ खड़े होकर अपने अठारह वर्षीय लडके बिसना से कहा ,  ‘ देख रेबिसना , जे ही अपने करतार हैं ... अन्नदाता हैं ... पाँव लाग ... पाँव ! ’

          बिसना भी उनके पैरों में बिछ गया | उन्होंने फिर खादी के कुर्ते की आस्तीनें ऊँपर चढ़ाई और बिसना को उठाया |

          ‘ देख बब्बा ... महाराज को कुरता कैसे झक्क – झक्क कर रओ है!’  उन्हें दूसरों से बातें करते देख बिसना धीरे से बुधना से कहता है | 

          ‘ महाराज जमीन पर चलत हैं का जो अपन की बंडी जईसे उनको कुरता मैलो – चीकट हो जाए ... महाराज बड़ी – बड़ी कार में चलत हैं और आसमान में उड़त हैं | ’  बुधना ने कहा |

          ‘ तबई तो उनके पैरों में धूल तक नईं लगी | ’  बिसना उनके पैरों को देखता हुआ बोला |

          अचानक भीतर से बुधना की घरवाली निकलकर आई और महाराज के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई |

          ‘ आप ठीक हैं ना ! कोई तकलीफ तो नहीं है ? ’ उन्होंने पूछा |

          ‘ सबई ठीक – ठाक है ... आपकी किरपा है | ’  बुधना की घरवाली ने कहा |

          अचानक उन्होंने अपने नाक पर रुमाल रखा ,  ‘ ये कैसी स्मेल आ रही है ? ’

          उनके पीछे खड़े चहेते और बड़े – छोटे अधिकारी चौंके ,  ‘ लगता है सर ! कोई चीज सड़ रही है अथवा कोई चूहा , कुत्ता या जानवर मर गया है ... सर ... ये उसकी स्मेल है ! ’

          ‘ हाय दैया ! ... मैं रोटी बना रही थी ... तवे पर छोड़

 आई ... सगरी जल गई ! ’  कहती हुई बुधना की घरवाली भीतर

 की ओर तेजी से  चली गई | ** 


                       - पवन शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर (

 राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    कभी दूसरों के ब्लॉग पर भी कमेंट किया करो।
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

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  2. बहुत - बहुत धन्यवाद शास्त्री जी | आपको भी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बधाई | आप इस ब्लॉग में अपनी रचनाएँ भेजेंगे तो यह ब्लॉग धन्य हो जाएगा | आपकी रचनाओं की इस ब्लॉग में हमेशा ही प्रतीक्षा रही है |

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  3. आदरणीय आलोक सिन्हा जी आपका ह्रदय से आभार |

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