यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है " से लिया गया है -
सन्दर्भ से कटकर
सारे सन्दर्भों से कटे हुए ,
तन में औ’ मन में ही बँटे
हुए ,
कैसे जन्मायेंगे
जीवन्ती योजना ?
अर्थ नहीं सपनों की भीड़ों
का ,
आँगन में देवदारु – चीड़ों
का ,
व्यर्थ के प्रसंगों पर
आँखों को निचोड़ना |
बिकता है विज्ञापन , चीज
नहीं ,
सभ्य व्यक्त करते हैं , खीज
नहीं ,
अलगावों में ज्यों
सम्बन्धों को खोजना | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद , आदरणीय आलोक सिन्हा जी |
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