यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " अँधेरा बढ़ रहा है " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
झील रात की
साँझ – सुबह के मध्य अवस्थित
झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से |
नीली – नीली लहर नींद की
उठती - गिरतीं ,
अवचेतन मन की कितनी ही
नावें तिरतीं ,
कुण्ठाओं के कमल खिले हैं
सपनों जैसे |
साँझ – सुबह के मध्य अवस्थित
झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से |
इसी झील के तट पर पेड़ गगन
है वट का ,
काला बादल चमगादड़ – सा उल्टा
लटका ,
शंख – सीप नक्षत्र रेत में
हैं पारे – से |
साँझ – सुबह के मध्य अवस्थित झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से |
नंगी नहा रहीं प्रकाश की
लाख बेटियाँ ,
तट पर बैठी बाथरूम – गायिका
झिल्लियाँ ,
खग चीखे –
वह डूब रहा है चाँद ,
बचा लो
गहरे में से |
साँझ – सुबह के मध्य अवस्थित
झील रात की ,
भरी हुई है अँधियारे से | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
सर्वप्रथम आपने इस नवगीत को इसमें स्थान दिया , इसके लिए बहुत - बहुत धन्यवाद | मैं बिल्कुल इस चर्चा में शामिल होऊँगा |
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद , आलोक सिन्हा जी |
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद , शान्तनु सान्याल जी |
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