यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -
चन्द्रमा दोपहर का
दुपहर है
और अभी ताजा है गुलमोहर ,
किन्तु रात देख उठी एक आँख
खोल कर |
धूप अभी चिलक रही ,
किलक रहा दिवस अभी ,
असम्पृक्त हैं अब तक
भिन्न – भिन्न आकृतियाँ ,
पानी पर काँप रहीं
विहगों की आवृतियाँ ;
रंग – रूप सब सच है ,
रेखाएँ जीवित हैं |
किरनों का महल
अभी हुआ नहीं खण्डहर ,
किन्तु एक चमगादड़ उड़ रहा
कंगूरों पर |
दुपहर है
और अभी ताज़ा है गुलमोहर ,
किन्तु रात देख उठी एक आँख
खोल कर | **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
अच्छी रचना है |
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक सिन्हा जी |
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