यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिए गया है -
निशि – दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
सिर पर उजियारे की पगड़ी
बाँधे रहा दिया ,
तम अनियारे रखा , देह में
तब तब रक्त जिया ;
काल – रात्रि में ज्योति –
केतु घर – घर फहराये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
पर अब भी शातिर अँधियारा
पसरा धरती पर ,
नक्षत्रों का बोझ लिये
बेमानी है अम्बर ;
मावस ने दहशत के ऐसे व्यूह
बनाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
अब न दिवाली निशि – दिन अब
धृतराष्ट्र व गांधारी ,
और हस्तिनापुर में है
दुर्योधन की पारी ;
जिसकी खातिर भीष्म – कर्ण ने
शस्त्र उठाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब
जलाये थे !!
बचकर रहना शकुनी की तुम
घातक चालों से ,
अभिमन्यु के बधिकों औ’
लाक्षाग्रह वालों से ;
मारो ज्यों न भीष्म से
अन्यायी बच पाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !! **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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