अपनी बात
दोहा हिन्दी के प्राचीन और आदिम छन्दों
में से एक है | अपने दो चरणों के लघुतर कलेवर से बड़ी से बड़ी बात को भी सम्पूर्णता और
सरलता के साथ कहने की जो सामर्थ्य दोहों में है , वैसी अन्य किसी विधा में नहीं | यों
तो यह मुक्तक काव्य के लिए अभिहित है , किन्तु कवियों ने इसका प्रबन्ध काव्यों में
भी भरपूर प्रयोग किया है | आकार में संक्षिप्त दोहा सहज , सरल , मुहावरेदार भाषा
के कारण तुरन्त याद भी हो जाता है | अनपढ़ ग्रामीण लोगों से भी कबीर , तुलसी , रहीम
आदि के अवसरानुकूल सटीक दोहे स्वाभाविक रूप से सुने जा सकते हैं |
जीवन और जगत के बहुरंगी अनुभवों , गहन
अनुभूतियों और मानवीय संवेदनाओं के असीम सागर को दोहा अपनी छोटी – सी गागर में
सफलतापूर्वक समाहित किये हुए है | श्रृंगार , प्रेम , भक्ति , प्रकृति , नीति ,
आध्यात्म , दर्शन ,जीवन के विविध संदर्भ , विसंगति , अन्याय , शोषण , भ्रष्टाचार ,
अपसंस्कृति और मानवीय सरोकारों से जुड़ा कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है , जो इसकी
अभिव्यक्ति के दायरे में आने से बच सका हो | यही कारण है कि अत्यन्त सरल लगने वाला
दोहा लिखने के लिए भी दोहाकार में भाव – प्रवणता , संवेदनशीलता , प्रतिभा और
अभिव्यक्ति कौशल का होना नितान्त आवश्यक है |
विगत दिवस से दोहा लेखन के क्षेत्र में
दोहाकार अन्य विधाओं की भांति नये – नये प्रयोग कर रहे हैं इसका शुभारम्भ नवगीत के
पुरोधा और शिखर पुरुष पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ द्वारा सम्पादित ‘ सप्तपदी ’
श्रृंखला के साथ हुआ है | परम्परागत दोहों को सपाटबयानी , खड़ी बोली और ब्रजभाषा की
बेमेल खिचड़ी , उपदेश व तथ्यपरक वर्णनात्मकता से निकल कर दोहों में आधुनिक भाव –
बोध और सामयिक यथार्थ के साथ काव्य की नवीनता व मौलिकता , आम आदमी के दुख – दर्द ,
उसके दैनन्दिनी संघर्ष और सरोकारों के प्रति संवेदनशीलता , सामजिक व राजनैतिक
विसंगतियों और विडम्बनाओं पर कुठाराघात एवं अभिव्यक्ति की कलात्मकता अर्थात कथन
में उक्ति – वैचित्र्य और प्रतीकों , बिम्बों व मिथकों का सम्यक प्रयोग किया जा
रहा है | इन विशेषताओं से युक्त अनेक दोहा – संग्रह इधर प्रकाशित हुए हैं और हो
रहे हैं |
आपाधापी और भाग – दौड़ भरे आज के
भौतिकवादी – कम्प्यूटरी व्यस्त युग में लम्बी – लम्बी रचनाएँ पढ़ने की न तो किसी को
फुरसत है और न इतना धैर्य ही | फलस्वरूप विषय – वैविध्य और नये – नये तेवरों से
युक्त दोहा अपनी संक्षिप्तता , अंदाजेबयां , मारक – क्षमता और प्रभविष्णुता के
कारण आज पर्याप्त ख्याति और लोकप्रियता अर्जित कर चुका है , जिससे आकर्षित होकर उर्दू के अनेक शायरों और ग़ज़लकारों ने भी दोहा
विधा में अपने हाथ आजमाये हैं |
मैं सन 1972 में पत्थलगाँव ( जिला – रायगढ़
) में पदस्थ हुआ | वहाँ भारतेन्दु की परम्परा के जीवन्त वाहक श्री गोकुल चन्द्र
अग्रवाल मेरे स्नेही मित्र थे | आपातकाल लगा और वे ‘ मिसा ’ में बन्द कर दिये गये
| तब मैंने पहले – पहल कुछ दोहे लिखे थे | उनमें से बानगी बतौर दो प्रस्तुत हैं –
अपनों ही पर जुल्म है ,
अपनों से ही बैर |
अपनों को ये क्या हुआ , जो
अपने ही गैर ?
0
बोये हैं आपात के , सत्ता ने
अंगार |
ऊपर से आतंक की , बहती तीब्र बयार
||
किन्तु फिर मैंने दोहे नहीं लिखे |
भैया जगत प्रकाश चतुर्वेदी ने दिनाँक
16.07.93 के पत्र में मुझे निम्नलिखित दोहा लिखकर भेजा और मुझसे भी दोहे लिखने का
आग्रह किया –
किसी अमंगल सूत्र की , कसती
जाती गाँठ |
बंटबारा सुख का बहुत , दुख
का कहीं न बाँट ||
भाई सोम ठाकुर ने 10.05.95 को सुनाया –
पानी – पानी हो गये , देख
कैबरे आज |
याद बहुत आयी हमें , घूँघट
वाली लाज ||
मन में जग तो रहा था कुछ | फलतः 08.07.95
को मैंने कुछ दोहे लिखे , जिन्हें पढ़कर बन्धुवर पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ ने
अपने 50 – 60 दोहे भेजे और मुझसे कुछ और दोहे लिखने ( दिनाँक : 05.08.95 ) और
11.11.95 को ‘ सप्तपदी – 5 ’ में शामिल होने का आग्रह किया | अस्तु , मैं समझता
हूँ कि यही वह बिन्दु है , जिससे दोहा लिखने का मेरा एक निश्चित सिलसिला पुनः शुरू
हुआ , जो भिन्न – भिन्न मनः स्थितियों में लिखे जाने के कारण विभन्न प्रकार के हैं
| फिर भी यह तो कह ही सकता हूँ कि मैंने जीवन में जो देखा है , भोग है और महसूसा
है उन्हीं अनुभूतियों को सच्चाई और ईमानदारी के साथ दोहे के रूप में शब्दों का
विशेष जामा पहनाने का प्रयास किया है |
भैया का आग्रह तो अवश्य था , किन्तु
मुझसे इन दोहों को लिखवाने में आत्मीय बन्धु पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ के
प्रेरक आग्रह की मुख्य भूमिका रही है | मेरे सौ – सवा सौ प्रारम्भिक दोहे देखकर
अभिन्न बन्धु सोम ठाकुर ने अनेक बहुमूल्य सुझाव और परामर्श दिये थे | प्रिय बन्धु
आचार्य भगवत दुबे प्रथम भेंट के समय कुछ दोहे सुनकर ही मेरे अनुजवत बन गये | पहली
बार मेरे दोहे आदरणीय विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ‘ दस्तावेज ’ के ‘ दोहा अंक ’ में
और फिर बन्धुवर राम अधीर ने ‘ संकल्प रथ ’ के ‘ महाप्राण निराला अंक ’ में छापे |
डॉ0 इसाक ‘ अश्क ’ ने ‘ समकालीन दोहे ’ और श्री अशोक ‘ अंजुम ’ ने ‘ दोहा दशक : दो
’ संकलनों में मेरे दोहों को स्थान दिया | बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कवि एवं
व्यंगकार डॉ0 गोपाल बाबू शर्मा ने ‘ दोहा दशक : दो ’ में प्रकाशित मेरे दोहों के
सम्बन्ध में अपनी वैदुष्यपूर्ण टिप्पणी दी | सुप्रसिद्द नवगीतकार बन्धुवर श्यामजी ‘
निर्मम ’ ने बड़े स्नेह और आत्मीयतापूर्वक इनको प्रकाशित कराने का दायित्व निभाया
और उनके सुयोग्य पुत्र प्रिय पराग कौशिक ( नियामक – अनुभव प्रकाशन ) ने आपके हाथों
तक पहुँचाया | एतदर्थ इन सबके प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ |
साथ ही इस दोहा सतसई – ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ की भूमिका के लेखक प्रख्यात
साहित्यकार व ‘ साहित्य परिक्रमा ’ के पूर्व सम्पादक डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी एवं
फ्लैप पर अपनी टिप्पणीं देने के लिए विद्वत प्रवर डॉ0 भारतेन्दु मिश्र के प्रति
अनुग्रहित हूँ |
अन्त में , सुधि पाठकों और विद्वजनों
के हाथों में अपनी यह दोहा सतसई ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ सहर्ष सौंपते हुए आशा करता
हूँ कि वे अपने बहुमूल्य अभिमत से मुझे अवश्य अवगत करायेंगे और मेरा सृजन – पथ
सुगम बनायेंगे |
इसी विश्वास के साथ –
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी , बिल्कुल | आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |
ReplyDeleteसुन्दर आलेख
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