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12.11.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा - " मेरी छोटी आँजुरी " ( दोहा - सतसई ) - " अपनी बात "








अपनी बात

 

          दोहा हिन्दी के प्राचीन और आदिम छन्दों में से एक है | अपने दो चरणों के लघुतर कलेवर से बड़ी से बड़ी बात को भी सम्पूर्णता और सरलता के साथ कहने की जो सामर्थ्य दोहों में है , वैसी अन्य किसी विधा में नहीं | यों तो यह मुक्तक काव्य के लिए अभिहित है , किन्तु कवियों ने इसका प्रबन्ध काव्यों में भी भरपूर प्रयोग किया है | आकार में संक्षिप्त दोहा सहज , सरल , मुहावरेदार भाषा के कारण तुरन्त याद भी हो जाता है | अनपढ़ ग्रामीण लोगों से भी कबीर , तुलसी , रहीम आदि के अवसरानुकूल सटीक दोहे स्वाभाविक रूप से सुने जा सकते हैं |

          जीवन और जगत के बहुरंगी अनुभवों , गहन अनुभूतियों और मानवीय संवेदनाओं के असीम सागर को दोहा अपनी छोटी – सी गागर में सफलतापूर्वक समाहित किये हुए है | श्रृंगार , प्रेम , भक्ति , प्रकृति , नीति , आध्यात्म , दर्शन ,जीवन के विविध संदर्भ , विसंगति , अन्याय , शोषण , भ्रष्टाचार , अपसंस्कृति और मानवीय सरोकारों से जुड़ा कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है , जो इसकी अभिव्यक्ति के दायरे में आने से बच सका हो | यही कारण है कि अत्यन्त सरल लगने वाला दोहा लिखने के लिए भी दोहाकार में भाव – प्रवणता , संवेदनशीलता , प्रतिभा और अभिव्यक्ति कौशल का होना नितान्त आवश्यक है |

          विगत दिवस से दोहा लेखन के क्षेत्र में दोहाकार अन्य विधाओं की भांति नये – नये प्रयोग कर रहे हैं इसका शुभारम्भ नवगीत के पुरोधा और शिखर पुरुष पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ द्वारा सम्पादित ‘ सप्तपदी ’ श्रृंखला के साथ हुआ है | परम्परागत दोहों को सपाटबयानी , खड़ी बोली और ब्रजभाषा की बेमेल खिचड़ी , उपदेश व तथ्यपरक वर्णनात्मकता से निकल कर दोहों में आधुनिक भाव – बोध और सामयिक यथार्थ के साथ काव्य की नवीनता व मौलिकता , आम आदमी के दुख – दर्द , उसके दैनन्दिनी संघर्ष और सरोकारों के प्रति संवेदनशीलता , सामजिक व राजनैतिक विसंगतियों और विडम्बनाओं पर कुठाराघात एवं अभिव्यक्ति की कलात्मकता अर्थात कथन में उक्ति – वैचित्र्य और प्रतीकों , बिम्बों व मिथकों का सम्यक प्रयोग किया जा रहा है | इन विशेषताओं से युक्त अनेक दोहा – संग्रह इधर प्रकाशित हुए हैं और हो रहे हैं |

          आपाधापी और भाग – दौड़ भरे आज के भौतिकवादी – कम्प्यूटरी व्यस्त युग में लम्बी – लम्बी रचनाएँ पढ़ने की न तो किसी को फुरसत है और न इतना धैर्य ही | फलस्वरूप विषय – वैविध्य और नये – नये तेवरों से युक्त दोहा अपनी संक्षिप्तता , अंदाजेबयां , मारक – क्षमता और प्रभविष्णुता के कारण आज पर्याप्त ख्याति और लोकप्रियता अर्जित कर चुका है , जिससे आकर्षित होकर  उर्दू के अनेक शायरों और ग़ज़लकारों ने भी दोहा विधा में अपने हाथ आजमाये हैं |  

          मैं सन 1972 में पत्थलगाँव ( जिला – रायगढ़ ) में पदस्थ हुआ | वहाँ भारतेन्दु की परम्परा के जीवन्त वाहक श्री गोकुल चन्द्र अग्रवाल मेरे स्नेही मित्र थे | आपातकाल लगा और वे ‘ मिसा ’ में बन्द कर दिये गये | तब मैंने पहले – पहल कुछ दोहे लिखे थे | उनमें से बानगी बतौर दो प्रस्तुत हैं –

                   अपनों ही पर जुल्म है , अपनों से ही बैर |

                   अपनों को ये क्या हुआ , जो अपने ही गैर ?

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                    बोये हैं आपात के , सत्ता ने अंगार |

                    ऊपर से आतंक की , बहती तीब्र बयार ||

          किन्तु फिर मैंने दोहे नहीं लिखे |

          भैया जगत प्रकाश चतुर्वेदी ने दिनाँक 16.07.93 के पत्र में मुझे निम्नलिखित दोहा लिखकर भेजा और मुझसे भी दोहे लिखने का आग्रह किया –

                 किसी अमंगल सूत्र की , कसती जाती गाँठ |

                 बंटबारा सुख का बहुत , दुख का कहीं न बाँट ||

          भाई सोम ठाकुर ने 10.05.95 को सुनाया –

                    पानी – पानी हो गये , देख कैबरे आज |

                    याद बहुत आयी हमें , घूँघट वाली लाज ||

          मन में जग तो रहा था कुछ | फलतः 08.07.95 को मैंने कुछ दोहे लिखे , जिन्हें पढ़कर बन्धुवर पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ ने अपने 50 – 60 दोहे भेजे और मुझसे कुछ और दोहे लिखने ( दिनाँक : 05.08.95 ) और 11.11.95 को ‘ सप्तपदी – 5 ’ में शामिल होने का आग्रह किया | अस्तु , मैं समझता हूँ कि यही वह बिन्दु है , जिससे दोहा लिखने का मेरा एक निश्चित सिलसिला पुनः शुरू हुआ , जो भिन्न – भिन्न मनः स्थितियों में लिखे जाने के कारण विभन्न प्रकार के हैं | फिर भी यह तो कह ही सकता हूँ कि मैंने जीवन में जो देखा है , भोग है और महसूसा है उन्हीं अनुभूतियों को सच्चाई और ईमानदारी के साथ दोहे के रूप में शब्दों का विशेष जामा पहनाने का प्रयास किया है |

          भैया का आग्रह तो अवश्य था , किन्तु मुझसे इन दोहों को लिखवाने में आत्मीय बन्धु पं0 देवेन्द्र शर्मा ‘ इन्द्र ’ के प्रेरक आग्रह की मुख्य भूमिका रही है | मेरे सौ – सवा सौ प्रारम्भिक दोहे देखकर अभिन्न बन्धु सोम ठाकुर ने अनेक बहुमूल्य सुझाव और परामर्श दिये थे | प्रिय बन्धु आचार्य भगवत दुबे प्रथम भेंट के समय कुछ दोहे सुनकर ही मेरे अनुजवत बन गये | पहली बार मेरे दोहे आदरणीय विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ‘ दस्तावेज ’ के ‘ दोहा अंक ’ में और फिर बन्धुवर राम अधीर ने ‘ संकल्प रथ ’ के ‘ महाप्राण निराला अंक ’ में छापे | डॉ0 इसाक ‘ अश्क ’ ने ‘ समकालीन दोहे ’ और श्री अशोक ‘ अंजुम ’ ने ‘ दोहा दशक : दो ’ संकलनों में मेरे दोहों को स्थान दिया | बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कवि एवं व्यंगकार डॉ0 गोपाल बाबू शर्मा ने ‘ दोहा दशक : दो ’ में प्रकाशित मेरे दोहों के सम्बन्ध में अपनी वैदुष्यपूर्ण टिप्पणी दी | सुप्रसिद्द नवगीतकार बन्धुवर श्यामजी ‘ निर्मम ’ ने बड़े स्नेह और आत्मीयतापूर्वक इनको प्रकाशित कराने का दायित्व निभाया और उनके सुयोग्य पुत्र प्रिय पराग कौशिक ( नियामक – अनुभव प्रकाशन ) ने आपके हाथों तक पहुँचाया | एतदर्थ इन सबके प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ | साथ ही इस दोहा सतसई – ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ की भूमिका के लेखक प्रख्यात साहित्यकार व ‘ साहित्य परिक्रमा ’ के पूर्व सम्पादक डॉ0 योगेन्द्र गोस्वामी एवं फ्लैप पर अपनी टिप्पणीं देने के लिए विद्वत प्रवर डॉ0 भारतेन्दु मिश्र के प्रति अनुग्रहित हूँ |

          अन्त में , सुधि पाठकों और विद्वजनों के हाथों में अपनी यह दोहा सतसई ‘ मेरी छोटी आँजुरी ’ सहर्ष सौंपते हुए आशा करता हूँ कि वे अपने बहुमूल्य अभिमत से मुझे अवश्य अवगत करायेंगे और मेरा सृजन – पथ सुगम बनायेंगे |

          इसी विश्वास के साथ –

                                          - श्रीकृष्ण शर्मा  

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.        



3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जी , बिल्कुल | आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |

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