श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - " एक नदी कोलाहल " से लिया गया है -
बादल तो आये
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गए |
सात – सात दिन तक सावन में
मेघिल झर झरना ,
सच पूछो तो हुआ आज की
पीढ़ी को सपना ;
कत्लेआम वनों का कर , लगता
हम छले गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये ||
बिगड़ा मौसम का मिजाज ,
गरमाये सूरज जी ,
हावी होती हरीतिमा पर ,
मरुथल की मरजी ,
जहर – बुझी है हवा , कान
पेड़ों के मले गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये ||
कंकरीट के जंगल उगकर
होने लगे घने ,
अन्धे – तंग गली – कूँचे सब
गन्दे , कींच – सने ;
पाश धूप के तन में धुन्ध –
धुएँ के डले गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये ||
देहरी को लीप कर सवेरे
रंगोली रचना ,
उत्सव पर मेंहदी व महावर
गीत – नाद – हँसना ;
भाषा – भूषा – संस्कृति के
सब गौरव दल गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये ||
बाल बिखेरे धूल घुडचढ़ी
अम्बर में करती ,
शोकगीत लिखती हर तितली
तिल – तिल कर मरती ;
शोर बन गया जालिम इतना , सब
पग तले गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये ||
आतंकित है आज प्रकृति
बढ़ रहे प्रदूषण से ,
पर्यावरण मिट रहा है
पगलाये दूषण से ;
नाश देखता , मनुज मरण – पथ में
बढ़ भले गये |
बादल तो आये , पर बिन बरसे
ही चले गये || **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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