श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से ली गई कविता -
हमको न ऐतराज़
आप रहते रहें शीर्ष पर ,
हमको न ऐतराज़ ,
हम हमको नीचे , नीचे , कहीं
रहने दीजिये !
हम तलघरे में झोंपड़े में
या कि सड़क पर ,
गर रात बिताते रहे
तो आपका क्या हर्ज ?
हम बैठे रहे घास पर
या बैठे बेंच पर ,
ये जानकार क्यों आपका
यों बढ़ रहा है मर्ज ?
आप बैठे हैं , बैठे रहें ,
हमको न ऐतराज़ ,
पर हमको तो लहरों में जरा
बहने दीजिये !
हम खेल रहे आग से
लोहे को झेलते ,
उससे हुई है आपकी
सेहत ये क्यों ख़राब ?
हमको न सूखी रोटी
आप चर रहे तर माल ,
फिर भी है हरारत
और आप ले रहे जुलाब ;
आप तन से औ ’ मन से थके ,
हमको न ऐतराज़ ,
पर हमको तो इस यज्ञ में कुछ
दहने दीजिये ! **
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
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