पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से ली गई है -
सिगरेट के बुझे हुए टुकड़े
( भाग – 2 से आगे )
नरेश फिर चुप रहा | उसकी आँखों में
प्रश्न उभर आया |
“ तू जानता है न कि मुझे पिताजी की
नौकरी मिली थी |” मैंने कहा|
नरेश की आँखों में प्रश्न ज्यों – का –
त्यों टंगा हुआ था |
“ यदि ऐसा नहीं होता तो शायद मैं भी
तेरी ही तरह ... ” अबकी बार मैंने अपनी बात जान – बूझकर अधूरी छोड़ी |
नरेश बैठे – बैठे बार – बार अपना पहलू
बदलने लगा | एक बैचेनी थी, जो उसे बराबर जकड़ती जा रही थी|
“ पिताजी की मौत ने हमारे जीवन में सुख
– ही – सुख भर दिए | ” बेहद सपाट स्वर था मेरा |
“ व्हाट डू यू मीन ? ” नरेश के मुँह से
घुटी – घुटी चीख निकल पड़ी और वह मुझे आँखें फाड़ – फाड़कर देखने लगा |
“ सौ फीसदी सच | उनके मरने पर मुझे
अनुकम्पा नियुक्ति मिली | पिताजी का फण्ड मिला – लगभग दो – सवा दो लाख | एल.आई.सी.
की दो पॉलिसी के डेढ़ – डेढ़ लाख मिले | एक साथ इतना पैसा ! ”
एकाएक नरेश को दीवाल पर रेंगती छिपकली
दिखाई दी | वह तेजी से उठा और दोनों हाथों को ऊपर करके हिलाते हुए छिपकली को भागने
का प्रयास करने लगा | जब वह छिपकली भगा रहा था , तब उसके मुँह से अजीब – सी
अस्पष्ट आवाजें निकल रही थीं | छिपकली को भगाकर वह बिस्तर पर बैठकर मुझे ताकने लगा
|
मैंने बात जारी रखी , “ उसी पैसे से
रुकमा की शादी की | उसी पैसे से छोटू को गाँव में दुकान डलवा दी – खूब चल रही है |
अम्मा को पेंशन मिल रही है | बाकी का पैसा बैंक में डाल रखा है , उसका ब्याज भी
मिल रहा है | ”
नरेश का मुँह खुला रह गया | आँखें बाहर
निकलने लगीं |
“ क्या पिताजी के जीवित रिटायर होने पर
इतना पैसा मिलता ? ... क्या मैं और छोटू सेटल्ड हो पाते ? ”
“ नेव्हर – नेव्हर | ” नरेश के मुँह से
घरघराती आवाज निकली |
“ अब तू ही बता कि पिताजी की मौत ने
हमारे जीवन में सुख भरा या नहीं ? ” एकाएक मेरी आवाज धीमी हो गई , “ सच कहता हूँ
कि मैं तेरी जगह होता तो इन दिनों के लिए अपने भीतर उर्जा बचाकर नहीं रख पाता | ”
अनजाने में ही मैंने एक कटु सत्य को
नरेश के सामने रख दिया | हो सकता है कि पिताजी की आत्मा को बेहद पीड़ा पहुँची हो ,
क्योंकि लोग यही कहते हैं कि असमय मरने वाले की आत्मा भटकती रहती है | शायद यहीं
कहीं पिताजी की भी आत्मा भटक रही हो | ये सोचकर मैं क्षणभर के लिए विचलित हो गया |
बाहर बौछारें तेज हो गईं | तेज हवा से
खिड़की के पल्ले बन्द होने तथा खुलने लगे | मैंने उठकर खिड़की बन्द की | बिस्तर पर
लेटे हुए मैंने घड़ी देखी – सवा दो बज रहे हैं | हमें नींद लेशमात्र नहीं है | ऐसा
लग रहा है कि बातें करते हुए सारी रात गुजार देंगे |
नरेश ने पैकिट में से एक सिगरेट
निकालकर सुलगा ली और जल्दी – जल्दी कश लेने लगा | मैं जानता हूँ कि जब वह उद्विग्न
होता है , तब वह सिगरेट अवश्य पीता है और जल्दी – जल्दी कश लेता है |
“ एक – एक कप चाय हो जाए | ” नरेश ने
कहा |
मैं इस स्थिति से उबरने का प्रयास कर
रहा था | अच्छा हुआ नरेश ने ही मुझे उबरने का मौका दे दिया |
“ मैं भी यही सोच रहा था | ” कहकर मैं
रसोई में चाय बनाने चला गया |
नरेश ने उठकर खिड़की खोली | अभी भी तेज हवा
चल रही थी | खिड़की के पल्लों को पकड़कर खड़ा वह बाहर अँधेरे में कुछ देख रहा था और
जल्दी – जल्दी सिगरेट के कश ले रहा था |
बौछारें हल्की हो गई थीं |
थोड़ी देर बाद मैं दो कप में चाय ले आया
| नरेश ने मेरे हाथ से एक कप थामा और बिस्तर पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेने लगा |
“ तूने बताया नहीं कि तेरा आना कैसे
हुआ ? ” चाय की चुस्कियों के बीच मैंने फिर से उसकी ओर सवाल उछाला | मेरे द्वारा
उछाले गए सवाल पर नरेश फिर खामोश रहा – पहले की तरह |
थोड़ी देर के लिए कमरे में सन्नाटा फैल
गया |
नरेश चाय की चुस्कियों के बीच सिगरेट
के कश भी ले रहा था | थोड़ी देर बाद उसने सिगरेट बुझाकर फेंक दी | चाय ख़त्म कर हमने
अपने – अपने खाली कप टेबिल पर रख दिए |
“ मैं सुबह पहली बस से गाँव चला जाउँगा
| ” एकाएक नरेश ने जाने की घोषणा की |
“ क्यों ? ... कल और रुकता | ” मैंने
कहा |
“ नहीं रुक सकता | परसों मुझे सुधा को
उसकी ससुराल से विदा कराकर लाना है | ”
“ सुधा की शादी हो गई ? ” मुझे आश्चर्य
हुआ |
“ पिछले माह | ” कहने के बाद नरेश अपने
नरेश दोनों हाथों की हथेलियाँ रगढ़ने लगा |
“ शादी का कार्ड नहीं भेजा | खबर तक
नहीं की | ” मैंने शिकायत भरे लहजे में कहा |
“ मैंने सोचा कि तुझे खबर मिली होगी |
” कहने के बाद नरेश दीवाल – घड़ी को देखने लगा | पौने चार बज रहे हैं | साढ़े पाँच
पर पहली बस जाती है |
“ क्या मुझे सपना आया था | ” मैंने
बनावटी रोष दर्शाया और सिगरेट सुलगाई |
“ अरे ! ... पिताजी तो सुधा की शादी के
डेढ़ माह पहले से तेरे ऑफिस के चक्कर काटने लगे थे | ”
“ क्यों ? ”
“ अपने जी.पी.एफ. से पार्टफाइनल
सेंक्शन करवाने के लिए | ”
“मैं उन्हें पहचान नहीं पाया था | ”
नरेश कुछ कहना चाहता था , किन्तु कह
नहीं पाया | केवल होंठ हिल रहे थे | चेहरा सफ़ेद होने लगा | वह उठा और अपने बैग में
से कुछ फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा निकाला | उसने फॉर्म तथा कागजों का पुलिन्दा
मेरी ओर बढ़ा दिया | होठों के बीच सिगरेट दबाकर मैं उन्हें उलट – पलटकर देखने लगा |
देखने के बाद सिगरेट उँगलियों में फंसाई |
बाहर बारिश पूरी तरह से थम गई थी |
एकाएक नरेश ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए ,
“ तू पिताजी का पार्टफाइनल सेंक्शन करवा दे | तेरा अहसान होगा हमारे ऊपर | बोल ,
करवाएगा कि नहीं ? ”
थोड़ी देर मैं चुप रहा , फिर चालू छाप
उत्तर दिया , “ कोशिश करूँगा | ”
“ कोशिश नहीं – करवाना है | ” कहते –
कहते नरेश के चेहरे पर तनाव के साथ विद्रूपता उभर आई , “ तू नहीं जानता – शादी में
जिनसे कर्जा लिया था , अब वो लोग हर दूसरे – तीसरे दिन छाती पर खड़े हो जाते हैं |
”
मैं फिर से थोड़ी देर के लिए चुप रहा |
कुछ सोचता रहा |
“ अपने यहाँ का पूरा सिस्टम ही ख़राब है
– ये बात जानता है न तू ... बिना गिव एण्ड टेक के कुछ नहीं होता आजकल | ” मैंने
बुरा – सा मुँह बनाया , फिर नरेश के चेहरे पर अपनी नजरें स्थिर कीं | सिगरेट का कश
भरा | धुआँ छोड़ा , फिर कहा , “ तू अपना आदमी है | पाँच परसेंट ही देना | सभी से दस
परसेंट लेते हैं | मैंने अपना शेयर छोड़ दूँगा | कम लगेगा | ”
नरेश के भीतर कुछ चटक गया ... चेहरे पर
तनाव के साथ उभरी विद्रूपता गाढ़ी हो गई ... कानों में असंख्य सीटियाँ बजने लगीं |
एक अनचाहा सन्नाटा कमरे की दीवालों से टकराने लगा | नरेश जूझने लगा सन्नाटे से ...
सिगरेट की आँच से उँगलियों में जलन होने लगी | नरेश ने उँगलियों में फँसी सिगरेट
झटके से फेंक दी |
नरेश को फिर से दीवाल पर रेंगती छिपकली
दिखाई दी | वह उठा और फिर से दोनों हाथों को ऊपर उठाकर छिपकली को भगाने लगा |
छिपकली भागी नहीं , जैसे की दीवाल पर चिपक गई हो |
“ बोल क्या कहता है ? ” जब वह छिपकली
भगा रहा था , तब मैंने पूछा |
नरेश ने कोई उत्तर नहीं दिया |
छिपकली भगाते हुए नरेश के मुँह से
अस्पष्ट आवाजें फिर से निकलने लगीं | अबकी बार आवाजें बहुत तेज थीं |
पूरे कमरे में सिगरेट की राख तथा बुझे
हुए टुकड़े बेतरतीब ढंग से बिखरे हुए हैं |
नरेश अभी भी अपने दोनों हाथों को ऊपर
उठाकर छिपकली को भगा रहा है | मेरी हिम्मत नहीं होती कि मैं फिर से पूछूँ कि बोल ,
क्या कहता है ? **
पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय
जुन्नारदेव , जिला –
छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश )
फोन नम्बर –
9425837079
Email – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
मेरी कहानी को पाठकों के समक्ष लाने के लिए साधुवाद सुनील जी.. 🙏
ReplyDeleteमेरी कहानी को पाठकों के समक्ष लाने के लिए साधुवाद सुनील जी.. 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद |
ReplyDeleteधन्यवाद |
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