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13.9.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " संध्या " - ( एक )



कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - " अँधेरा बढ़ रहा है " से लिया गया है -












" संध्या " – (एक)

बैठ गयी है
ऊपर चढ़ कर धूप
          नीम पर ,
     लेकिन
     साड़ी का पल्लू
     लटका मुंडेर पर |

दिन भर
चल कर थका
और माँदा ये सूरज ,
फिसला चला जा रहा
घाटी की ढलान से |
     खेत चुग रहे पाखी
     अब उड़ चले गगन में ,
     जब कि चलायी गोफन
     संध्या ने मचान से |
बोझिल क़दमों लौट रही है
हवा भीलनी ,
अपने आँचल में
मादक महुआ समेट कर |
घनी झाड़ियों
अलसाया – ऊँघता पड़ा था
दिन भर रीछ – सरीखा तम ,
अब बढ़ा आ रहा |
     निकल – निकल कर
     अन्दर से आ रहीं तरैयाँ ,
     देख रहीं
     नंगा जंगल
     दूधों नहा रहा |
शहर बदर थी
जो वीरानी औ’ सूनापन ,
बस्ती में लाता
सन्नाटा उन्हें घेर कर | **

            - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

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