चूमना चाहता हूँ
धूप में पिघलता पत्रहीन पीपल का पेड़
किसी निर्वाक पहाड़ की भाँति खड़ा
उसकी कोमल, स्निग्ध कोंपलयुक्त शाखाएँ
उड़ते पंछियों को छूना चाहती थी जैसे
पत्रहीन पीपल को देखने का अहसास
कुछ ऐसा था जैसे किसी छोटी पुस्तक के भीतर
सहेजकर रखी गयी हो विद्या पेड़ की पत्तियाँ
ब्रेल लिपि की तरह उभरा था पीपल का पेड़
आसमान के कैनवास पे
जैसे किसी बच्चे को गोद में लिये
उसका माथा चूमता हूँ
कुछ ऐसे ही चूमना चाहता हूँ उस पेड़ को
बच्ची की तरह अपनी बाँहें फैलाए
बुला रहा है वह पीपल का पेड़। **
- अयाज़ खान
114 सग्गम
एमपी वार्ड 11
जुन्नारदेव 480551
ज़िला- छिन्दवाड़ा
मध्य प्रदेश
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन
नम्बर– 09414771867
अच्छी कविता है. बधाई.
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