कैसे बसंत बहारें मैं गाऊँ
जब बोटी- बोटी खाने को कुत्ते
सड़कों पर आमादा हों,
जब भूख प्यास से तड़प रहा अपना,
और भंडारों में दबाया आटा हो,
जब राजा को तहस-नहस करने के,
मंसूबे बनाता प्यादा हो,
जब गौ को दी गई इक रोटी भी,
गृहस्वामी को लगती ज्यादा हो,
तब कैसे अपनी फटती छाती का
दर्द लिए मैं छुप जाऊँ,
तब कैसे लहू से स्याह कलम से,
लिखने से मैं रुक जाऊँ।
जब सावन की मद्धिम बारिश,
तूफ़ाँ लाने के सपने देख रही हो,
जब पुरवाई कोमल तन को,
वैशाखी तपन सी सेक रही हो,
जब मद्धिम हो जाए जलधि की लहरें,
और आँचल में भूतल के छिप जाए,
जब धवल चाँदनी इंदु की,
देख समय को कुम्हला जाए,
जब वीत राग की हो आहट
तो कैसे प्रीत राग को दोहराऊँ,
जब घर के बाहर आग लगी हो,
तो कैसे बसंत बहारें मैं गाऊँ।
जब माटी का कण- कण भी,
त्राहिमाम रुदन करने लगे,
जब इस सृष्टि का नाद स्वयं भी,
स्वकंपित स्वरों से डरने लगे ,
जब भूतल की अग्नि भी,
काल की तपन से जलने लगे,
जब सागर खुद हो जाए अधीर
और मरुधर पर बहने लगे,
जब हवन कुंड बलिवेदी बन जाए,
तो कैसे तपोवन अपना सजवाऊँ।
जब जरा हो रही हो मेरी वसुधा,
तो कैसे अपना यौवन दिखलाऊँ ।
जब सच्चाई झुठलाने को,
सिर कटने की नौबत आ जाए,
जब मेरे जिगर के टुकड़े में,
शत्रु की सोबत आ जाए,
जब अपनी ही बस्ती पर,
गणिका की तोहमत आ जाए,
जब अपनी जमीं के बदले में,
जीने की मोहलत आ जाए,
तब कैसे अपनी साँसों को ,
गिरवी होने से बचा पाऊँ,
तब कैसे जिल्लत के मंडप को,
इज्जत से मैं सजा पाऊँ। **
- नेमीचंद मावरी " निमय "
---------------------------------------------------------------------
संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
No comments:
Post a Comment
आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |