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कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - '' उत्तर रामचरित के पन्ने ''



( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है )



















उत्तर रामचरित के पन्ने

फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          चन्दा को पाने की खातिर ,
          सेतु बनाया फिर सागर ने ;
          रहे न धरा – गुजरिया सूखी ,
          फोड़ दिया घट नटनागर ने ;
          देहरी भीगी , द्वारा भीगा ,
          जब पानी ने हाथ छुआये |


फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          मेघों की काली चादर पर ,
          इन्द्रधनुष किरणों ने छापा ;
          निज हथेलियों से बदली ने
          सूरज की आँखों को ढांपा ;
          रात खोल दिन का दरवाजा
          भीतर आई बिना बताये |

फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          फिर कुछ ऐसा लहरा आया ,
          जिसने डाला भिगो बिछौना ;
          सभी जगह कीचड़ – फिसलन है ,
          कहाँ रुके यह मन का छौना ;
          फिर कुछ ऐसी विद्युत् तड़की ,
          जिसने दरपन तक चटकाये ;


फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          बरखा के पाँवों की आहट
          सुनकर रोमांचित हरियाली ;
          धुँआ – धुँआ अम्बर का चेहरा ,
          मंच हुआ तारों से खाली ;
          जो कि तिमिर में जले उम्र भर ,
          वही सभा से गये उठाये ;



फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          बरस पड़ी रिमझिमें धूल पर ,
          मार रही ताने पुरवाई ;
          लेकिन किसी दुखान्त काव्य की
          जीवन बना रहा चौपाई ;
          मौसम की मनमानी सहते ,
          हम ताशों - जैसे बिखराये |


फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये |


          खड़ा हुआ है आज निर्दयी
          बौछारों में भावुक परिचय ;
          छोड़ रही है मज़बूरी में
          मन की सीता सुख का आश्रय ;
          उत्तर रामचरित के पन्ने ,
          लिख – लिखकर भवभूति पठाये |


फिर अम्बर में बादल घुमड़े ,
फिर आँखों में आँसू आये | **



   - श्रीकृष्ण शर्मा 





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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन 

नम्बर– 09414771867

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