निर्मूल
बादलों ने दस्तक दे दी है,
मासूम से दिखने वाले मौसमी कीड़े,
बाहर निकल धूप का आनंद लेने लगे ,
शाखें नई कोपलों से हरित हुई,
बारिश से धुल हर पेड़ के पत्ते जवां हो गए,
चहक- चहक घरों में दुबके पंछी,
कभी तालाब, कभी मंदिर परिसर,
तो कभी पहाड़ पर उगे ऊँचे पेडों की डालियों पर,
अपने खुश होने का प्रमाण देने में लगे ।
धरती से उठने वाली तपन अब असहाय सी हो गई,
निर्झर राग सुनाने को आमादा है।
पुरवाई ने मन मोह लिया।
दादर, झींगुर और खसारियाँ संगीतज्ञ बन गए।
निम्बोलियाँ पीली हो धरती पर फिर से
नन्हें-नन्हे पौधों में बदलने लगी है।
घरों पर चाय और पकौड़े की मुँह में
पानी लानी वाली महक अब तेज होने लगी है।
इन सबके बीच भीग रहे हैं दोस्त प्यार के रंग से।
पुराने ठूँठ के हरे होने की कहानी सी हो गयी है दोस्ती।
कभी बाढ़ भी आई, आँधियाँ चली,
झंझावातों ने समूल नाश भी करना चाहा।
मगर ठूँठ को आस रही,
कोई आशापूर्ण करने वाले सावन की।
तपती धरा पर पानी की बूंदों की आवक हुई,
और फिर से ठूँठ एक ही बार में जैसे जीवित हो गया। **
- नेमीचंद मावरी " निमय "
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।