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14.8.20

अयाज़ खान की कविता - '' अव्यक्त ''















अव्यक्त 

सोकर उठे हैं ख़्वाब
छूकर गया है स्पर्श
देख रहा है मंज़र
बोल रही है ख़ामोशी।

निकल पड़ी हैं मंज़िलें
पिघल रही है चाँदनी
ठहर गया है समय
झुक गयी हैं पलकें।

बाट जोह रहा पंथ
जाग रही है नींद
प्यासा है पोखर
सजने लगे बाज़ार
सोकर उठे हैं ख़्वाब... **




  - अयाज़ खान 
114 सग्गम
एमपी वार्ड 11
जुन्नारदेव 480551
ज़िला छिन्दवाड़ा
मध्य प्रदेश







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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन 

नम्बर– 09414771867

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