( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
यों मत दौड़ो !
यों मत दौड़ो
गिर जाओगे ,
गिरे अगर तो पीछे आते
पावों - तले कुचले जाओगे |
कीचड़ में
धरती लथपथ है ,
पता न फँसे
कहाँ पर रथ है ;
सँभले अगर न ,
कर्ण सरीखे
समर - मध्य मारे जाओगे !
सडयंत्रों में
चक्रव्यूह है ,
कृत्या
अभिशापिता रूह हैं ;
चेतो ,
इस महफूज तख़्त को
' तख्ता ' तुम्हीं बना पाओगे ! **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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