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24.7.20

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - '' निर्वसन संस्कृति खड़ी ''

( कवि श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है )















निर्वसन संस्कृति खड़ी

छलावों के 
और धोखों के पड़ावों में ,
रह रहे हैं हम तनावों में |


लौह 
औ ' सीमेंट की काया ,
राक्षसी विज्ञापनी माया ;


भोगवादी उत्सवों के शामियाने ,
कोलतारों से भरे 
ख़ूनी तालाबों में |


चेहरे 
खोये मुखौटों में ,
निर्वसन संस्कृति खड़ी
घर और कोठों में ;


ज़िन्दगी कुछ के लिए 
आस्वाद जिस्मों का ,
और ढोते साँस कुछ 
जलते अभावों में | ** 



  - श्रीकृष्ण शर्मा 








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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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