( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
नींव
‘ तुम कुछ नहीं कर सकते |
जो कुछ करना है अब मुझे ही करना है | तुम तो हाथ – पर हाथ रखे बैठे रहो | ’ मम्मी की तल्खी चरमसीमा पर थी | पापा चुप बैठे
थे | मम्मी की तल्खी के सामने पापा अक्सर शाँत और चुप ही रहते थे |
‘ मैंने पहले भी कहा था कि दुनियाँ जिस
रास्ते पर चल रही है उसी पर तुम भी चलो | लेकिन तुम ... तुम तो हरिशचन्द्र हो | ’
मम्मी फिर तल्खी से कहती हैं |
पापा चुप ही रहते हैं | अनुशासन व
ईमानदारी से कार्य न करने वाले कर्मचारियों को बुरी तरह लताड़ने वाले पापा अक्सर
मम्मी के सामने अपना मुँह नहीं खोल पाते |
‘ वो गुलाटी बहुत कमीना है | पहले भी
तुम्हें उसी ने फँसाया था और अब फिर | एकाउन्ट के मामले में तो तुम्हें सावधानी
बरतनी चाहिए थी | ’ मम्मी की आवाज बेहद
तल्ख़ थी , ’ बाप रे , बाप ! लाखों का घपला – तुम्हारे सिर | ’
मुझे पापा की ओर से कोई आवाज सुनाई
नहीं देती |
‘ मि. दयाल ही डिविजनल मैनेजर हैं न ? ’ इस बार मम्मी की आवाज नर्म थी |
‘ तुम उनके पास नहीं जाओगी सुमि...समझीं तुम ! ’ एकाएक पापा दहाड़े , ' शराब का नशा ... सिगरेट का कसैला धूआँ ...
उन्मुक्त हँसी ... ठहाके ... ठिठौली ... और तुम ... दयाल की बाहों में झूमती तुम
... | ’ कहते – कहते पापा की आवाज धीमी और
आहत – सी हो उठती है , ' केस सॉल्व करवाने
का यह तरीका कौन – सा है ? ... तीन वर्ष से यह प्रश्न मेरे लिए अनुत्तरित है सुमि
! ’
‘ उस वक्त तुम्हें बचा लिया ... नहीं
तो बैठे रहते सस्पेंड होकर घर में | ’ मम्मी बहुत जोरों से चीखीं |
पापा चुप थे – हमेशा की तरह |
मुझे लगा कि इतने बड़े आलीशान बंगले की दीवारें
हिल रही हैं किन्तु , मम्मी के इतने जोर से चीखने के बाद भी पापा क्यों चुप थे ?
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- पवन शर्मा
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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