( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
आतंक
धीरे – धीरे मैं उसकी ओर
बढ़ने लगा | वह बैंच पर अधलेटा , हल्की मुस्कराहट के साथ मुझे आता देखने लगा | मेरे
नजदीक बैठने पर वह उठकर बैठ गया |
‘ आज काफी देर कर दी | ’
‘ आते–आते रास्ते में एक से मुलाकात
करनी थी , सो देर हो गई |’ मैंने कहा और
उसके नजदीक बेंच पर बैठ गया|
‘ किस सम्बन्ध में ? ’ उसने पूछा |
मैं थोड़ा झिझका , ‘ बस , यों ही | ’
‘ फिर भी ? ’
‘ ऑफिशियल पर्पज से | ’
‘ क्यों ? ’
‘ क्योंकि अभी मैं जहाँ काम कर रहा हूँ
, वहाँ मुझे पिछले कई दिनों से किसी – न – किसी बात पर , बिना वजह टोका जा रहा है
... कभी – कभी शो – काज नोटिस भी थमाई जा रही है | ’ मैं किसी अज्ञात आतंक से ग्रसित होने लगा |
वह हँसा , बोला कुछ भी नहीं |
‘ और जब – जब मुझे टोका जाता है , या
नोटिस थमाई जाती है , तब – तब मुझे अपनी नौकरी छूटती दिखाई देती है ... इस नौकरी
की मुझे बहुत – बहुत जरुरत है | ’
अबकी बार वह बहुत जोरों से हँसा और
हँसते – हँसते बोला , ‘ लगता है – अब तुम
भी घबराने लगे ... मुझे देखो... ! ’
‘ तुम्हारी बात दूसरी है | ’ बीच में ही मैं बोला |
‘ क्यों ? ’
‘ क्योंकि अभी तुम नौकरी से नहीं लगे
हो ... और जब नौकरी से लग जाओगे , तब उसे चाहते हुए भी नहीं छोड़ सकते | ’
‘ ये बात नहीं है | ’
‘ फिर ? ’
‘ असल बात ये है कि ये पक्का नहीं होता
कि एक नौकरी छूट जाने के बाद हमें कोई दूसरी नौकरी मिल ही जाएगी| ’
‘ हो सकता है | ’
कुछ देर तक हम दोनों के मध्य ख़ामोशी
छाई रही |
‘ कल मैं गाँव लौट जाऊँगा | ’ एकाएक उसने कहा |
‘ क्यों ? ’ मैं चौंका |
‘ महिना भर हो गया | अभी तक जूते घिस
रहा हूँ | कहीं कोई गुंजाइश नहीं दीखती – यह भी नहीं कि कहीं जूठे बर्तन भी माँज
सकूँ ... उसके लिए भी मेरा इतिहास पूछते हैं | ’
पूर्व का वह आतंक पुनः मुझ पर हावी
होने लगा | मुझे लगा कि धीरे – धीरे मैं भी उसकी ही स्थिति में आता जा रहा हूँ |
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- पवन शर्मा
पता –
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
आभार और धन्यवाद सुनील जी
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