( कवि श्रीकृष्ण शर्मा
के नवगीत - संग्रह
- '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है
)
अपना है बचा क्या ?
चल रहे हम
दूसरों के पाँव ,
अपना है बचा क्या ?
दृष्टि अपनी
दृश्य औरों के ,
कह रहे हम
गर्व से सब
कथ्य औरों के ,
छोड़ बैठे जो
उन्हीं पर आजमाते
हम उन्हीं के दाँव ,
अपना है बचा क्या ?
प्रश्न हैं
पर नहीं उत्तर हैं ,
बिक रहे जो
जिन्स – जैसे
शीर्ष पर हैं ;
द्वार का जो काट बरगद
तक रहे ललचा
परायी छाँव ,
अपना है बचा क्या ? **
संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
बहुत सुन्दर।
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