पैसों की माया
पैसों की ये कैसी माया, कोई समझ नहीं पाता ।
दिल के रिश्ते नाम के हैं , पैसों से सबका नाता ।।
क्या - क्या करवाता है पैसा, भेद कोई न जान सका ,
कभी - कभी तो खुद पर भी, विश्वास मुझे अब न आता ।
भाई - भाई की जान का दुश्मन, बैरी कर देता है सबको ।
माता पिता को घर से निकाला, पैसा प्यारा लगता इनको।।
पैसों से ही बनते दुश्मन, कोई पैसों से मित्र बनाता ।
नफरत का आलम है यहाँ, पर सब चाहते है बस तुमको ।।
बिन पैसों के घर न चलता, ना चलता कोई व्यापार ।
लाज शर्म सब मोल बिके हैं , बिकता है पैसों से प्यार ।।
कोई मजहब या दफ्तर हो, चाहे नेता, अभिनेता हो ।
हर इंसा की एक तम्मना, चाहे बंगला, ऑफिस, कार ।।
दिन रात बस एक ही मन में, मेरा धन और मेरा पैसा ।
साथ न कुछ भी ले जाता है, रह जाता वैसे का वैसा ।।
घर की खुशियाँ भेंट चढ़ गई, माया के इसी फेर में ।
भोगना पड़ता है फल सबको, मिलता है जैसे को तैसा ।। **
- कमलेश शर्मा '' कमल ''
मु.पो.- अरनोद, जिला:- प्रतापगढ़(राज.)
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
बहुत सुन्दर।
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