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कवि कमलेश शर्मा "कवि कमल" की कविता - '' मृत्युभोज ''










मृत्युभोज


मातम  छा  जाता  उस  घर  में,  आँसू  रुक  ना  पाते  है ।
चाहे  गरीब  या  अमीर  हो,  मौत  के  दर  सब  जाते  है।।
शोक   संवेदनाएं   जिन्दा,   रहती    है  बस  बारह  दिन ।
तेरहवीं पर सब समाज मिल कर, मृत्यभोज को खाते है।।

कोई  दीपक   बुझ   गया,   या   राखी   का   तार  टुटा ।
सर से साया हटा किसी का, और किसीका सिंदूर मिटा।।
सारी उम्र कमा-कमा कर, तिनका तिनका  जोड़ा  सका ।
इस सामाजिक कुरीति  ने  उस  गरीब  को  बहुत  लूटा । 

खेती-बाड़ी,  घर, जेवर, और  खुद  भी  बिक  जाता  है ।
लोक लाज  के  खातिर  फिर  भी,  सबको  बुलाता  है ।।
हाथ झटक  कर  चल  देते  है,  सारे  रिश्ते  और  नाते ।
उसको पता है केवल वो कैसे, मृतक भोज कर पाता है।।

हे सामाजिक मनीषियों, कुछ तो नव संधान करो ।
डूबता जा रहा समाज, कोई तो इसपे ध्यान धरो। ।
चिंगारी एक ऐसी जलाओ, अभिशाप दूर कर जाए।
उठो क्रांतिकारी वीरो, इस मृत्युभोज को बंद करो।। **



- कमलेश शर्मा "कवि कमल" 
     (अध्यापक)
     मु. पो.-अरनोद, जिला:-प्रतापगढ़ (राज.)
     मो.9691921612




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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

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