मृत्युभोज
मातम छा जाता उस घर में, आँसू रुक ना पाते है ।
चाहे गरीब या अमीर हो, मौत के दर सब जाते है।।
शोक संवेदनाएं जिन्दा, रहती है बस बारह दिन ।
तेरहवीं पर सब समाज मिल कर, मृत्यभोज को खाते है।।
कोई दीपक बुझ गया, या राखी का तार टुटा ।
सर से साया हटा किसी का, और किसीका सिंदूर मिटा।।
सारी उम्र कमा-कमा कर, तिनका तिनका जोड़ा सका ।
इस सामाजिक कुरीति ने उस गरीब को बहुत लूटा ।
खेती-बाड़ी, घर, जेवर, और खुद भी बिक जाता है ।
लोक लाज के खातिर फिर भी, सबको बुलाता है ।।
हाथ झटक कर चल देते है, सारे रिश्ते और नाते ।
उसको पता है केवल वो कैसे, मृतक भोज कर पाता है।।
हे सामाजिक मनीषियों, कुछ तो नव संधान करो ।
डूबता जा रहा समाज, कोई तो इसपे ध्यान धरो। ।
चिंगारी एक ऐसी जलाओ, अभिशाप दूर कर जाए।
- कमलेश शर्मा "कवि कमल"
(अध्यापक)
मु. पो.-अरनोद, जिला:-प्रतापगढ़ (राज.)
मो.9691921612
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
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