( प्रस्तुत लघुकथा – पवन
शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )
फाँस
दिन भर फाइलों में नज़र गड़ाए
– गड़ाए सिर में दर्द हो जाता है | फाइलों को क्या दोष दिया जाए ! अब उसकी उम्र ही
अड़तालीस की हो चली है | दो बच्चों का बाप भी है | आज का समय ही ऐसा है कि बुढ़ापा
जल्दी घेर लेता है | पुरानी बात अलग थी | तब उतनी चिंताएँ भी नहीं होती थीं , इतनी
जिम्मेदारी भी नहीं होती थीं | आज बात अलग है |
घर में घुसते ही उसे छम्म शांति महसूस
हुई | लगा कि शायद अरविंद और उमा बच्चों सहित पिक्चर देखने या घूमने – फिरने निकल
गए हैं | वह अपने कमरे में आ गया और शर्ट उतारकर बिस्तर पर पसर गया |
एकाएक उसे लगा कि सचमुच घर में कोई
नहीं है | नहीं तो उमा के बच्चे उसके आ जाने पर मामाजी – मामाजी कहकर पैरों में
लिपट जाते | अब वह उठकर आँगन में आ गया | अम्मा बर्तन माँज रही थीं |
‘ वीनू और दिन्नु कहीं गए हैं ? ’ उसने अपने बच्चों के बारे में अम्मा से पूछा |
‘ हाँ , अपनी माँ के साथ बगल वालों के
यहाँ पिक्चर देखने गए हैं | ’
‘ जब देखो , तब पिक्चर के पीछे दूसरों के
घर में टी. वी. के सामने बैठे रहते हैं | ’
वह झल्लाता है , ‘ अरविंद और उमा ? '
‘ सागर चले गए | '
‘ चले गए ! ... कब ? ' बह बुरी तरह चौंका , ‘ सुबह तक तो जाने को कोई
प्रोग्राम नहीं था उन लोगों का | '
‘ दोपहर में | ‘
‘ उन्हें आए तीन दिन ही तो हुए थे ...इतनी जल्दी ! '
अम्मा कुछ नहीं कह्र्तीं |
‘ कुछ हुआ क्या ? ‘ वह पूछता है |
अबकी बार अम्मा फट ही पड़ी हों जैसे
, ‘ उमा बाल – बच्चों वाली हो गई है | वह
क्यों सुनेगी मेरी ! बस , बस इतना भर ही कहा था कि दामाद को भी कुछ करना चाहिए |
हाथ –पर – हाथ रखे नहीं बैठने चाहिए | यदि तू नौकरी नहीं कर रही होती तो कैसे काम
चलता ! ' जिस प्रकार अम्मा एकदम से फटी
थीं , उसी प्रकार शांत हो गईं , ‘ अपने
पेट से जनी से इतना भी नहीं कह सकती क्या ? '
वह ठगा – सा खड़ा रह गया | वह सोचता है –
छोटी – सी बात भी ठीक एक फाँस की तरह होती है , जो बेहद चुभती है , दर्द देती है !
एकाएक वह पत्नी को सामने पाकर बुरी तरह
चीख़ उठा , ‘ तुम बच्चों को क्यों बिगाड़
रही हो ... | ' **
- पवन शर्मा
श्री नंदलाल सूद शासकीय
उत्कृष्ट विद्यालय
,
जुन्नारदेव , जिला -
छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
धन्यवाद आपको 🙏
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteयोग दिवस और पितृ दिवस की बधाई हो।
धन्यवाद आपको 🙏
Deleteआप सभी को भी पितृ - दिवस एवं योग दिवस की बहुत - बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद आपको 🙏
Deleteछोटी बात भी फाँस की तरह चुभती है...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
सही कहा आपने कि छोटी से छोटी बात फांस की तरह है. धन्यवाद आपको 🙏
Deleteअच्छी मार्मिक रचना . रिश्तों के बीच कितने सूक्ष्म और नाजुक तन्तु होते हैं जरा छूनेभर से बिखर जाते हैं .
ReplyDeleteआपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी, उसके लिए धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteमर्म स्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरपुर।