Followers

20.6.20

पवन शर्मा की लघुकथा - '' फाँस ''




( प्रस्तुत लघुकथा – पवन शर्मा की पुस्तक – ‘’ हम जहाँ हैं ‘’ से ली गई है )  



                 फाँस

दिन भर फाइलों में नज़र गड़ाए – गड़ाए सिर में दर्द हो जाता है | फाइलों को क्या दोष दिया जाए ! अब उसकी उम्र ही अड़तालीस की हो चली है | दो बच्चों का बाप भी है | आज का समय ही ऐसा है कि बुढ़ापा जल्दी घेर लेता है | पुरानी बात अलग थी | तब उतनी चिंताएँ भी नहीं होती थीं , इतनी जिम्मेदारी भी नहीं होती थीं | आज बात अलग है |
          घर में घुसते ही उसे छम्म शांति महसूस हुई | लगा कि शायद अरविंद और उमा बच्चों सहित पिक्चर देखने या घूमने – फिरने निकल गए हैं | वह अपने कमरे में आ गया और शर्ट उतारकर बिस्तर पर पसर गया |
          एकाएक उसे लगा कि सचमुच घर में कोई नहीं है | नहीं तो उमा के बच्चे उसके आ जाने पर मामाजी – मामाजी कहकर पैरों में लिपट जाते | अब वह उठकर आँगन में आ गया | अम्मा बर्तन माँज रही थीं |
          ‘ वीनू और दिन्नु कहीं गए हैं ? ’  उसने अपने बच्चों के बारे में अम्मा से पूछा |
          ‘ हाँ , अपनी माँ के साथ बगल वालों के यहाँ पिक्चर देखने गए हैं | ’
          ‘ जब देखो , तब पिक्चर के पीछे दूसरों के घर में टी. वी. के सामने बैठे रहते हैं | ’  वह झल्लाता है ,  ‘ अरविंद और उमा ? '
          ‘ सागर चले गए | '
          ‘ चले गए ! ... कब ? '  बह बुरी तरह चौंका , ‘ सुबह तक तो जाने को कोई प्रोग्राम नहीं था उन लोगों का | '
          ‘ दोपहर में | ‘
          ‘ उन्हें आए तीन दिन ही तो हुए थे ...इतनी जल्दी ! '
          अम्मा कुछ नहीं कह्र्तीं |
          ‘ कुछ हुआ क्या ? ‘ वह पूछता है |
          अबकी बार अम्मा फट ही पड़ी हों जैसे , ‘ उमा बाल – बच्चों वाली हो गई है | वह क्यों सुनेगी मेरी ! बस , बस इतना भर ही कहा था कि दामाद को भी कुछ करना चाहिए | हाथ –पर – हाथ रखे नहीं बैठने चाहिए | यदि तू नौकरी नहीं कर रही होती तो कैसे काम चलता ! '  जिस प्रकार अम्मा एकदम से फटी थीं , उसी प्रकार शांत हो गईं ,  ‘ अपने पेट से जनी से इतना भी नहीं कह सकती क्या ? '
          वह ठगा – सा खड़ा रह गया | वह सोचता है – छोटी – सी बात भी ठीक एक फाँस की तरह होती है , जो बेहद चुभती है , दर्द देती है !
          एकाएक वह पत्नी को सामने पाकर बुरी तरह चीख़ उठा ,  ‘ तुम बच्चों को क्यों बिगाड़ रही हो ... | '  **


  - पवन शर्मा 
        श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,

        जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
        फो. नं. - 9425837079 .
        ईमेल – pawansharma7079@gmail.com



------------------------------------------------------------------------------------------------------

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
    

13 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर।
    योग दिवस और पितृ दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
  4. आप सभी को भी पितृ - दिवस एवं योग दिवस की बहुत - बहुत बधाई |

    ReplyDelete
  5. सुन्दर सृजन

    ReplyDelete
  6. छोटी बात भी फाँस की तरह चुभती है...
    बहुत ही सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने कि छोटी से छोटी बात फांस की तरह है. धन्यवाद आपको 🙏

      Delete
  7. अच्छी मार्मिक रचना . रिश्तों के बीच कितने सूक्ष्म और नाजुक तन्तु होते हैं जरा छूनेभर से बिखर जाते हैं .

    ReplyDelete
  8. आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी, उसके लिए धन्यवाद 🙏

    ReplyDelete
  9. मर्म स्पर्शी लघुकथा।
    संवेदनाओं से भरपुर।

    ReplyDelete

आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |