वक़्त - बेवक़्त
बदल गया कुछ बदल रहा है अपना हिंदुस्तान रे ।
मंद पड़ गई गाँव की रौनक शहर हुआ वीरान रे ।।
जगह - जगह पर पहरे हैं घर में रहने को मजबूर।
चुपके चुपके घर जाने को बेबस हो गए मजदूर ।।
फिर से याद आ रहे उनको खेत और खलिहान रे ।।
काम - धाम सब बंद हैं ऐसे , सांप सूंघ गया है जैसे।
सूखी रोटी भी नसीब से भाग रही जिएँ अब कैसे ?
जिजीविषा के वशीभूत सब तज घर किया पयान रे।।
बीमारी लेकर आई संग बेकारी, भुखमरी का जाल ।
रोजी रोटी छिनी जा रही लाचारी और खस्ताहाल ।।
अस्त व्यस्त की पराकाष्ठा अब हरने लगी है प्रान रे।।
भारत भ्रमण फीका पड़ गया उनके कदमों के आगे ।
लक्ष्य बनाकर निकल पड़े अब मौत देख उनको भागे।।
जीवन मरण से परे व्रत मन में लिया है उसने ठान रे।।
जिनके फौलादी बाहों ने महल बनाये बढ़ - चढ़कर ।
आज निराश्रित वह पैदल निकल पड़ा है अपने घर ।।
ताजमहल और लालकिला भी चकित और हैरान रे ।। **
- रामचन्दर '' आजाद ''
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संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय
विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिला– सवाई
माधोपुर ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867
बढ़िया गीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
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